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पहले कुछ ही देवालय और देवरे हुआ करते थे इसलिए किसी को कोई दिक्कत नहीं होती थी, जिधर से गुजर रहे हों उधर चार-पाँच देवरों के समक्ष हाथ जोड़ लिया करते थे, समय हो तो एक बार अंदर जा आएं, और अंदर न भी जा पाएं तो कम से कम उस दिशा में राम-राम तो कर ही लिया करें। 
और अपने यहाँ तो शिखर दर्शन का भी बड़ा पुण्य और महत्व है। पहले देवरों में रहने वाले भगवानों को इस बात से कोई सरोकार नहीं था कि कौन उन्हें प्रणाम कर रहा है और कौन बिना इधर देखे आगे बढ़ चला है। 
अब जात-जात के देवरे हैं, और किसम-किसम के भौंपो-भल्लों-पातरवाइये-हजूरिये भी हैं, भूत-पलीतों के ठिकाने भी हैं और अपने आपको देवी-देवता के रूप के मानने और मनवाने तथा खुद को पूजवाने वालों की भी श्रृंखलाएं बनी हुई हैं। 
इनमें जड़ पाषाण भी हैं, प्राण प्रतिष्ठित पाषाण भी हैं, जीवन्त मूर्तियां भी हैं और मनमाने ढंग से चलते-फिरने वाले और एक जगह स्थिर रहकर दूसरों को चलाने वालों की भी कोई कमी नहीं है। भगवान की मूर्तियों और उनके मन्दिरों के समक्ष नमन करें, न करें कोई फर्क नहीं पड़ता।
भगवान को इस बात की कभी कोई इच्छा नहीं होती कि कोई उनके सामने प्रणाम करे या न करे क्योंकि वह हर जीवात्मा के भीतर विद्यमान है।  जो लोग इस सत्य को जानते हैं वे परमात्मा को अपने भीतर ही जागृत करने के जतन करते हुए उन्हें प्रसन्न करते हुए साक्षात्कार का प्रयास करते हुए जीवन को सफल एवं धन्य बनाते हैं। 
आज के समय में देवरों और भौंपों की पूछ अधिक बढ़ गई है और भौंपे भी ऎसे कि जिन्हें तवज्जों, आदर-सम्मान न दें तो वे इस कदर बिफर जाते हैं जैसे कि उनका सब कुछ लूट लिया गया हो, छीन लिया गया हो, या छीनने की कोशिश कर रहे हों। 
हर भौंपा अपने-अपने देवरे का बादशाह होता है और वह यही चाहता है कि सब कुछ उसके अधीन हो, उसके क्षेत्र के सारे लोग उसके दास बनकर हाँ जी- हाँ जी करते रहें और भगवान की तरह पूजें, प्रतिष्ठा दें और जहाँ मौका मिले उनका महिमा मण्डन करते रहें।
देव-देवियों से कहीं अधिक अपने आपको पॉवरफुल मानने वाले ये भौंपे इस कदर व्यवहार करते हैं जैसे कि ये ही हैं जिनके बूते भगवान और लोक देवताओं की पूरी की पूरी जमात सुरक्षित है और ये न होते तो आज सारे देवरे सुनसान होते तथा इनमें प्रतिष्ठित मूर्तियां अनाथ। इस मायने में ये भौंपे भगवान के संरक्षक का दायित्व भी निभाते हैं और पालनहार का भी। 
देवरों को ही जिन्दगी का सच मानने वाले ये लोग अपने अहंकारों के साथ हर तरफ ऎसे फबे रहते हैं कि इनके बिना कोई भी इंसान सीधा संबंध स्थापित कर ही नहीं पाता। आजकल किसी को खुश करना हो तो खुद को अच्छा बताने या अच्छाइयों का वरण करने की कोई आवश्यकता नहीं है। 
अब केवल झूठी प्रशस्ति का गान करने और फिजूल का महिमा मण्डन कर देने मात्र से ही काम चल जाया करता है। अधिकांश लोग यही चाहते हैं कि लोग उनके आगे-पीछे घूमते रहें और उन्हें सामाजिक एवं परिवेशीय भगवानों के रूप में स्थापित करने में हर हमेशा मददगार बने रहें। 
ये यह भी चाहते हैं कि उन्हें हर जगह भगवान या सिद्धों की तरह आदर-सम्मान मिलता रहे। कोई आदमी कितना ही अच्छा काम करने में माहिर क्यों न हो, सर्वस्पर्शी और माधुर्यपूर्ण व्यक्तित्व का धनी क्यों न हो, जब तक इनके आगे नत मस्तक नहीं हो जाए तब तक आदमी के अच्छे और काबिल होने का प्रमाण पत्र नहीं मिलता। 
जमाने की बदचलनी देखियें कि इंसानियत का सर्टीफिकेट वे लोग देने लगे हैं या उन लोगों से चाहा जा रहा है जो खुद अपने आपको इंसान नहीं बना पाए हैं और आज भी पशु बुद्धि के साथ ही पशुता हावी है।  
अहंकार, झूठी प्रतिष्ठा और असत्य के काले-घने बादलों और पराये धूंए की धुंध में धुंधुकारी बने इस किस्म के लोग बड़ी-बड़ी जगहों पर विद्यमान हैं और हवाओं के साथ रमते हुए प्रदूषण फैला रहे हैं।  
जिन लोगों को देखने को जी नहीं करता, उन लोगों को अभिवादन करना और उनका सामीप्य पाना किसी को अच्छा नहीं लगता लेकिन मजबूरी यह है कि ऎसे ही लोग हर मोड़ पर किसी न किसी भेस में दिख जाते हैं। इन्हें न लांघा जा सकता है, न इनका उल्लंघन किया जा सकता है। 
लोग आजकल यही चाहते हैं। कुछ काम करो या न करो, कर्मयोग का माद्दा हो न हो, किसी के काम आ सकें या नहीं। खुद में अक्ल, प्रतिभा और हुनर हो न हो, लेकिन आजकल पूज्य और मान्य वही होने लगता है जो हर किसी देवरे को अपना मानता है, हर भौंपे को इज्जत देता है और वाह-वाह करता रहता है।  
मौजूदा हालातों में इंसानों की अपेक्षा देवरे और भौंपे बढ़ते जा रहे हैं। इसी अनुपात में इन्हें उन लोगों की प्रतीक्षा हमेशा बनी रहती है जो लोग इन्हें स्वीकारें। भले ही यह स्वीकार्यता ऊपर से हो, और बाद में कोई कितनी ही निन्दा क्यों न करता रहे।  
इन सारी बातों के बीच समझदार लोगों की सबसे अव्वल राय यही है कि जहां कहीं कोई से देवरे या भौंपे मिल जाएं, उन्हें अभिवादन करते हुए आगे बढ़ते रहें ताकि ये अपने मार्ग में बाधक न बनें और उनका यह भ्रम हमेशा प्रगाढ़ होता रहे कि हम उनके प्रति कितने अधिक श्रद्धावान और अनन्य आस्थाओं से भरे हुए हैं। ध्यान रखें कि ऎसा नहीं किया जाए तो जीवन यात्रा के कई मार्गों में फिजूल की बाधाएं आ सकती हैं।
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HINDU ASTHA

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