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प्रणाम- विनय और श्रद्धा का प्रतीक

                                                        

।। प्रणाम ।।

 प्रणाम के भाव को अपने हृदय मे रखकर जब कोई व्यक्ति अपने से बड़ों के समक्ष जाता है तो वह प्रणीत हो जाता है। प्रणाम का सीधा संबंध  विनीत होना नम्र होना है। प्रणाम करने वाला व्यक्ति अपने दोनों हाथ जोड़कर उन हाथों को अपने हृदय  से लगाकर बड़ों को प्रणाम करता है तो एक निहित भाव प्रकट होता है। 


ऐसा भी कहा गया है कि प्रणाम करते समय अपने दोनों हाथों की अंजलि वक्ष स्थल से सटी हुई होनी चाहिए ऐसा करने के पीछे यह कारण बताया जाता है कि प्रतीक स्वरूप हमारा पूरा अस्तित्व सम्मानित   व्यक्ति के सम्मुख समर्पित हो जाता है इसके अलावा प्राचीन काल में गुरुकुलों में दंडवत प्रणाम करने का विधान भी रहा है जिसमें शिष्य गुरु या अन्य किसी विशेष व्यक्ति के चरणों में साष्टांग लेट कर प्रणाम किया जाता रहा है।

 इस तरह से प्रणाम करने का मुख्य उद्देश्य  यह है कि गुरु के अंगूठे से प्रवाहित हो रही ऊर्जा को अपने सिर  पर धारण किया जाए जिससे शिष्य के जीवन में परिवर्तन होने लगता है। 

प्रणाम करने से  दिया गया आशीर्वाद का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। हमारे जीवन को एक सफल और विनायवान बनाने में एवं जीवन चरित्र मे  बदलाव लाने में सहयोग करता है।  

आशीर्वचन के साथ तप, शक्ति, संकल्प शक्ति जुड़ी हुई होती  है जिससे आशीर्वाद जल्दी ही फलित होते हैं और प्रत्यक्ष रूप से अपना प्रभाव दिखाते हैं। बुजुर्गो,साधु संतो के आशीर्वाद से व्यक्ति को आयु विद्या यश एवं बल की प्राप्ति होती है इसमें कोई शक नहीं।अत सभी साधू संतो, गुरुजनों अपने माता पिता  के समक्ष हमेशा विन्रम झुकते रहे एवं उनका आशीर्वाद और दुआएं पाते रहे।

लेखक मनोज मिश्रा पेशे से पत्रकार है