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आज का पंचांग | Aaj ka Panchang | 13 SEPTEMBER 2025

   


आज का हिन्दू पंचांग  


  दिनांक - 13 सितम्बर 2025

  दिन -  शनिवार

  विक्रम संवत 2082

  शक संवत -1947

  अयन - दक्षिणायन

  ऋतु - शरद ॠतु 

  मास - आश्विन

  पक्ष - कृष्ण 

  तिथि - षष्ठी सुबह 07:23 तक तत्पश्चात सप्तमी

  नक्षत्र - कृत्तिका सुबह 10:11 तक तत्पश्चात रोहिणी

  योग - हर्षण सुबह 10:33 तक तत्पश्चात बज्र

  राहुकाल - सुबह 09:30 से सुबह 11:02 तक

  सूर्योदय - 06:19

  सूर्यास्त -  06:34

  दिशाशूल - पूर्व दिशा मे

  व्रत पर्व विवरण - सप्तमी का श्राद्ध,सप्तमी क्षय तिथि


 विशेष - षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन मुँह में डालने से नीच योनियों की प्राप्ति होती है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)


 पितरों का उद्धार 


  भगवान शिव अपने पुत्र से कहते हैं: कार्तिकेय ! संसार में विशेषतः कलियुग में वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो सदा पितरों के उद्धार के लिये श्रीहरि का सेवन करते हैं । बेटा ! बहुत से पिण्ड देने और गया में श्राद्ध आदि करने की क्या आवश्यकता है। वे मनुष्य तो हरिभजन के ही प्रभाव से पितरों का नरक से उद्धार कर देते हैं। यदि पितरों के उद्देश्य से दूध आदि के द्वारा भगवान विष्णु को स्नान कराया जाय तो वे पितर स्वर्ग में पहुँचकर कोटि कल्पों तक देवताओं के साथ निवास करते हैं। - पद्मपुराण


  श्राद्ध में क्या करें क्या ना करें 


  श्राद्ध एकान्त में ,गुप्तरुप से करना चाहिये, पिण्डदान पर दुष्ट मनुष्यों की दृष्टि पडने पर वह पितरों को नहीं पहुचँता, दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिये, जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमंदिर ये दूसरे की भूमि में नही आते, इन पर किसी का स्वामित्व नहीं होता, श्राद्ध में पितरों  की तृप्ति ब्राह्मणों  के द्वारा ही होती है, श्राद्ध के अवसर पर ब्राह्मण को निमन्त्रित करना आवश्यक है, जो बिना ब्राह्मण के श्राद्ध करता है, उसके घर पितर भोजन नहीं करते तथा श्राप देकर लौट जाते हैं, ब्राह्मणहीन श्राद्ध करने से मनुष्य महापापी होता है | (पद्मपुराण, कूर्मपुराण, स्कन्दपुराण )


  श्राद्ध के द्वारा प्रसन्न हुये पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष आदि प्रदान करते हैं , श्राद्ध के योग्य समय हो या न हो, तीर्थ में पहुचते ही मनुष्य को सर्वदा स्नान, तर्पण और श्राद्ध करना चाहिये,

शुक्ल पक्ष की अपेक्षा कृष्ण पक्ष और पूर्वाह्न की अपेक्षा अपराह्ण श्राद्ध के लिये श्रेष्ठ माना जाता है | (पद्मपुराण, मनुस्मृति)


  सायंकाल में  श्राद्ध नहीं करना चाहिये, सायंकाल का समय राक्षसी बेला नाम से प्रसिद्ध है, चतुर्दशी को श्राद्ध करने से कुप्रजा (निन्दित सन्तान) पैदा होती है, परन्तु जिसके पितर युद्ध में शस्त्र से मारे गये हो, वे चतुर्दशी को श्राद्ध करने से प्रसन्न होते हैं, जो चतुर्दशी को श्राद्ध करने वाला स्वयं भी युद्ध का भागी होता है | (स्कन्दपुराण, कूर्मपुराण, महाभारत)


 रात्रि में  श्राद्ध नहीं  करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है, दोनो संध्याओं में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिये, दिन के आठवें भाग (महूर्त) में जब सूर्य का ताप घटने लगता है उस समय का नाम 'कुतप' है, उसमें  पितरों  के लिये दिया हुआ दान अक्षय होता है, कुतप, खड्गपात्र, कम्बल, चाँदी , कुश, तिल, गौ और दौहित्र ये आठो कुतप नाम से प्रसिद्ध है, श्राद्ध में तीन वस्तुएँ अत्यन्त पवित्र हैं, दौहित्र, कुतपकाल, तथा तिल, श्राद्ध में तीन वस्तुएँ अत्यन्त प्रशंसनीय हैं, बाहर और भीतर की शुद्धि, क्रोध न करना तथा जल्दबाजी न करना (मनुस्मृति, मत्स्यपुराण, पद्मपुराण, विष्णुपुराण)



  पंडित रामगोपाल डोलियां