ॐ नमश्चण्डिकायै- ३
एकदिवसीय नवचण्डी अनुष्ठान में दश ब्राह्मणों द्वारा दश दुर्गासप्तशती पाठ होते हैं।
अर्थात् दुर्गासप्तशती के दश पाठों के अनुष्ठान का नाम नवचण्डी प्रयोग है।
या नवरात्र में स्वयं के द्वारा या एक ब्राह्मण द्वारा दश दुर्गासप्तशती होना श्रेयस्कर कहा गया है।
अर्थात् नवचण्डी प्रयोग में दश पाठों का विधान है न कि नौ पाठों का। हवन पाठ का अङ्गीभूत कर्म है , उसका पाठ तो दश से अतिरिक्त है-
दशपाठात्मकं कर्म नवचण्डीति कथ्यते।
नवचण्डी पाठ के सङ्कल्प में और भी स्पष्ट कहा है-
दशपाठात्मक-नवचण्ड्याख्यमित्यूहे विशेष: कर्म करिष्ये।
और नवरात्र में एक शतचण्डी अनुष्ठान में दश नवचण्डी पाठ होते हैं। और दश ही ब्राह्मण होते हैं-
ते च शतचण्ड्यां दश।।
और नवरात्र में एक सहस्त्रचण्डी अनुष्ठान में सौ नवचण्डी पाठ होते हैं और सौ ही ब्राह्मण होते हैं।-
सहस्त्रचण्ड्यां शतम्।।
अनुष्ठान के आचार्यत्व जपादि कर्म हेतु पृथक् व्यवस्था कहीं गई है।
यथाश्रुत, गुरुपरम्परा, आर्ष प्रयोग आदि की आड में हम सब कई अच्छे और शास्त्रीय वचनों को अनसुना अनदेखा कर देते हैं।
इन यथाश्रुत आदि परम्पराओं के फेर में हम मूल को खोजना ही नहीं चाहते हैं।
नवरात्र में दुर्गासप्तशती पाठ का होम अष्टमी की रात्रि में विशेष शुभ कहा है।
राजमार्तण्ड में कहा है कि-
अष्टम्यां रात्रियोगे कृतनियमविधेर्यज्ञकर्म प्रदिष्टम्।।
नारद पुराण में भी कहा है कि -
तिलाज्यकुसुमादीनि पायसं मधुशर्करा:।
हविर्द्रव्याणि जुहुयाद् दुर्गाष्टम्यां विशेषतः।।
कालनिर्णय में और भी कहा है -
नवम्यां ज्वलनं वह्ने: पूर्णायां पशुघातनम्।
भद्रायां गोकुलक्रीडा तत्र राज्यं विनश्यति।।
तान्त्रिक साधना हेतु रुद्रयामल के दशवें अध्याय में कहा है कि अष्टमी को असम्भव हो तो नवमी को कर सकते हैं -
नवम्यां वा विशालाक्ष! कार्या होमादिका क्रिया।
विकल्प के तौर पर विशेष प्रयोगों में नवमी दशमी को भी होम बलि नवरात्रसमापन विजयी यात्रा आदि कह हैं -
नवम्यां च जपं होमं समाप्य विधिवद्बलिम्।
यात्रां वैजयिकीं कुर्याद्दशम्यां श्रवणेऽपि वा।
वैसे बलिदान आदि दशमी में निषिद्ध है -
दशम्यां दीयते यत्र बलिदानं च मानवै:।
तद्राष्ट्रं नाशमायाति मकरोपद्रवै: स्फुटम्।।
दुर्गा पूजा हो या कुलदेवी पूजा इन सबमें कुलाचार व्यवस्थाओं को महत्व देना श्रेयस्कर है।-
यस्य यस्य हि या देवी कुलमार्गेण संस्थिता।
तेन तेन च सा पूज्या बलिगन्धानुलेपनै:।।
नवरात्र के मध्य सूतकादि निर्णय -
सामान्य रूप से सभी कर्मों में सूतक-पातक अर्थात् जननाशौच या मरणाशौच का निषेध है।-
विष्णु पुराण में कहा है कि -
व्रतयज्ञविवाहेषु श्राद्धे होमेऽर्चने जपे।
प्रारब्धे सूतकं न स्यादनारब्धे तु सूतकम्।।
यहां सूतक मृत्यु का उपलक्ष्य है। व्रतादि का प्रारम्भ हो गया हो तो सूतक दोष नहीं लगता है। यहां संकल्प मात्र ही कर्म का प्रारम्भ है।
परन्तु ऋषियों ने नवरात्र के लिए विशेष व्यवस्था दी है-
प्रवृत्ते नवरात्रे तु सूतकं च तथा भवेत्।
देवीपूजा प्रकर्त्तव्या पशुयज्ञविधानत:।।
अर्थात् नवरात्र में सूतकादि का विक्षेप आन पड़े तो पशुयाग विधान से देवी पूजा करें। अर्थात् जिनके भी अशौच/आशौच हो जावे तो शेष प्रक्रिया प्रतिनिधि द्वारा सम्पन्न करावें।
नवरात्र का पारणा कब करें -
नवरात्र का पारणा कुल परम्परा के दिन या नवमी को ही श्रेयस्कर है।
व्रती चाहे तो नित्यप्रति एकभक्त व्रत अर्थात् दिन में कभी भी एकवक्त भोजन करें, नक्तव्रत अर्थात् सायं प्रदोषकाल में एक समय भोजन करें, अयाचित व्रत करें या उपवास करने वाले सात दिन का उपवास कर आठवें दिन अर्थात् अष्टमी को होम और उसके बाद नवमी को व्रत खोलें। दशमी को पारणा नहीं करें।-
दुर्गोत्सवे स्मृतं देव उपवासस्य सप्तकम्।
अष्टमे दिवसे होमस्तत: किञ्चित्तु भक्षयेत्।।
सार रूप में -
नवम्यां पारिता देवी कुलवृद्धिं प्रयच्छति।
दशम्यां पारिता देवी कुलनाशं करोति हि।।
नवरात्र पारणा के अनेक विधान हैं। सामान्य रूप से नवरात्र पारणा कर्म समाप्ति पर ही श्रेयस्कर हैं।-
एकभक्तेन नक्तेन स्वशक्त्याऽयाचितेन च।
अथवा नवनक्तैश्च नवरात्रं समापयेत्।।
त्रिगुणात्मिकामां जगदम्बा का कृपा प्रसाद बना रहे।
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
पंडित कौशल दत्त शर्मा
ज्योतिषाचार्य
नीमकाथाना राजस्थान
9414467988
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