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जयपुर। विश्व गुरू महामण्डलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द जी महाराज ने गुरूवार को श्याम नगर के ओम विश्व गुरूदीप आश्रम में सत्संग को संबोधित करते हुए कहा कि बुद्धि भ्रष्ट हो सकती है लेकिन विवेक भ्रष्ट नहीं हो सकता पर वह विवेकहीन हो सकता है। इसलिये मनुष्य को इन्द्रियों पर संयम रखकर विवेकपूर्वक कार्य करना चाहिये तभी वह जीवन में सफल हो पायेगा। उन्होने आगे कहा कि अगर हमारे कर्म अच्छे होगें तो हमें जीवन में सफलता मिलेगी। इसलिये हमारे जीवन में विचार सुन्दर व स्वच्छ होने चाहिये। व्यक्ति जैसे कर्म करता है उसको उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति होती हैं इसलिये हम सभी को अपने जीवन में अच्छे कर्म करते हुये जीवन व्यतीत करना चाहिये। क्योंकि जो जैसा करता है उसको वैसे ही फल की प्राप्ति होती हैं।
उन्होने आगे कहा कि हमारे समूचे जीवन में सबसे अधिक महत्व ईश्वर की भक्ति का है जिससे कि हम मृत्यु की घडियों में अपने आप को सौंप सके जो बीत गया सो बीत गया। अब हमें भविष्य की ओर बडना चाहिये और यह भविष्य उज्जवल तथा निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिये। और अधिक से अधिक आध्यात्मिक चिंतन कर जीवन को पवित्र बनाना चाहिये।
महामण्डलेश्वर ज्ञानेश्वरपुरी महाराज ने बताया कि सत्संग में काफी संख्या में श्रद्वालुओं ने भाग लिया।
   



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HINDU ASTHA

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