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भीलवाड़ा। व्यकित को निष्कामभाव से भक्ति करनी चाहिए। भक्ति ऐसी हो जिसमें व्यक्ति तन, मन से डूब जाये। यह कहना है महामण्डलेष्वर स्वामी जगदीष पुरी महाराज का।अग्रवाल उत्सव भवन में चातुर्मास प्रवचन के दौरान आयोजित धर्मसभा को यमराज-निचिकेता प्रसंग पर उद्बोधित करते हुए स्वामी जी ने बताया कि जब जब व्यक्ति के जीवन में कोई मुसीबत आती है तब तब तो वो प्रभू को याद कर लेता हेै। ज्योंही काम निकला और प्रभू को भूल जाता है।  व्यक्ति को निष्कामभाव से भक्ति करनी चाहिए।  सिर्फ गरज पडने के समय भगवान को याद करना सही नहीं है। वर्तमान समय में व्यक्ति को भगवान की याद तब ही आती है जब वो किसी मुसीबत में पडता है।  जैसे ही कोई संकट आया वो संकट दूर करने के लिये भगवान को मनाने में जुट जाता है और ज्योंही संकट टला मंदिर के बाहर से निकलने में भी वो कतराने लगता है। ऐसी भक्ति व्यर्थ है और ऐसे भक्त का भी कोई मतलब नहीं है।  भक्ति हो तो मींरा जैसी हो जिसे सिर्फ श्याम ही श्याम नजर आते थे। प्रभू के ध्यान में जब व्यक्ति स्वयं को पूरी तरह डूबो देगा तो ही वो भक्ति सार्थक है। धर्मसभा को संत महेन्द्र चैतन्य ने ’’भवतारण सद्गुरु भगवन को- प्रणाम सदा में करता हूं’’  भजन से संगीतमय बनाया।सकल जैन समाज द्वारा चातुर्मास सेवा सप्ताह के अंतर्गत विभिन्न सेवाकार्य एवं आयोजन करवाये जा रहे हैं। समाज का चातुर्मास समिति के टी.सी. चैधरी, भरत व्यास व संजय निमोदिया आदि  ने स्वागत किया एवं अतिथियों ने माल्यार्पण कर महामण्डलेष्वर का आषीर्वाद प्राप्त किया। 

पंकज पोरवाल
भीलवाड़ा
Axact

HINDU ASTHA

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