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भीलवाड़- इंसान की तृष्णा का कोई अन्त नहीं है। ज्यों जयों उमर बढती जाती है त्यों त्यों तृष्णा बढती जाती हेै। यह कहना है महामण्डलेष्वर स्वामी जगदीष पुरी महाराज का।अग्रवाल उत्सव भवन में चातुर्मास प्रवचन के दौरान आयोजित धर्मसभा को यमराज-निचिकेता प्रसंग पर उद्बोधित करते हुए स्वामी जी ने बताया कि इंसान की तृष्णा कभी शान्त नहीं होती है।  99 को  100 करने का फेर पूरी जिन्दगी व्यक्ति के साथ चलता रहता हेै। व्यकित रात-दिन अपनी इच्छा पूरी करने में रत रहता हेे। एक इच्छा पूरी हुई नहीं चार नई इच्छाएं जन्म ले लेती हेै।  समय के साथ साथ व्यक्ति का शरीर साथ नहीं देता उसे दिखना कम हो जाता है, चलना कम हो जाता है, सुनना और बोलना भी कम हो जाता है लेकिन उसके मन में इच्छाएं कभी कम नहीं होती हेै।  बुढापा आने पर भी इच्छाएं और तृष्णा कभी बूढी नहीं होती।  जिस व्यक्ति ने अपनी तृष्णा पर काबू पा लिया उसका जीवन सफल हैै।धर्मसभा को संत महेन्द्र चैतन्य ने ’’ बृज में बांसूरी बाजे ’’ भजन से संगीतमय बनाया।पधारे अतिथियों का चातुर्मास समिति के टी.सी. चैधरी, भरत व्यास व संजय निमोदिया आदि  ने स्वागत किया एवं अतिथियों ने माल्यार्पण कर महामण्डलेष्वर का आषीर्वाद प्राप्त किया।

पंकज पोरवाल
भीलवाड़ा  
Axact

HINDU ASTHA

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