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कोटपूतली। माता सीता का हरण करने के बाद असत्य का प्रतिक लंका सम्राट रावण आखिर कब तक जीवित रह सकता था। युद्ध में माया के सहारे उसने कौशल तो खुब दिखाये लेकिन जैसे ही प्रभु श्रीराम ने प्रत्यंचा पर बाण चढ़ाया वैसे ही रावण ने अपने जीवन की अन्तिम घडिय़ा गिननी शुरू कर दी। प्रभु श्रीराम द्वारा मारे गये तीर के लंका पति के नाभी में लगते ही उसके प्राण पखेरू हो गये और इसी के साथ सत्य की असत्य पर जीत हुई और बुराईयों का नाश हो गया। कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला शुक्रवार शाम कस्बा स्थित बावड़ी पर जहां रामलीला के मंचन के बाद रावण के पूतले का दहन किया गया। हजारों की संख्या में मौजूद दर्शकों ने जय श्रीराम के नारे भी लगाये। बावड़ी पर रावण के करीब 25 फीट ऊंचे पूतले का दहन किया गया। इससे पूर्व बाली के लंकापति को अन्तिम चेतावनी देने के प्रसंग का संवाद भी हुआ।


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