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रिपोर्ट - जगत जोशी  
रावतसर:- धर्म नगरी के नाम से मशहूर रावतसर कस्बे मे यूँतो  कई मन्दिर व देव स्थान है लेकिन बाबा खेतरपाल मन्दिर की आस्था भारतवर्ष के कोने कोने मे फैली हुई है। दूर दराज से श्रद्धालु बाबा खेतरपाल जी के धोक लगा कर अपनी मन्नते पूरी करने के लिए आते है। राजस्थान के जिला हनुमानगढ के रावतसर तहसील मे मेगा हाईवे हनुमानगढ रोड़ पर स्थित बाबा खेतरपाल मन्दिर है। कस्बे के धणी कहे जाने वाले बाबा खेतरपाल जी के कई चमत्कारो के कारण इनकी ख्याती दूर दूर तक फैली हुई है। दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु अपनी मनोकामने पूरी होने पर लडडू,बतासे,तैल,सिन्दूर आदि का प्रसाद चढाते है। वही अनेकेा श्रद्धालु उबले चने (बाकळे) व जिवित बकरे जिसे अमर बकरे के नाम से जाना जाता है को भी चढाते है। इस मन्दिर मे भारी संख्या मे आने वाले श्रद्धालुओ के लिए रहने ठहरने आदि का पूरा प्रबन्ध मन्दिर निर्माण कमेटी द्वारा किया हुआ है। 
मन्दिर की स्थापना:- मन्दिर स्थापना के बारे मे यू ंतो कई कथाऐं प्रचलित है लेकिन मन्दिर के मुख्य पुजारी नारायण सिंह सुडा (राठौड़) ने बताया कि इस मन्दिर की स्थापना वर्ष 1593 मे रावत राघोदास जी द्वारा हुई थी । वर्ष 1593 मे रावत राघोदास जी व बीकानेर के राजा रायंिसह जी सेना के साथ दक्षिण भारत मे गये हुये थे। वहंा पर भयकंर अकाल पड़ा हुआ था सेना सहित सभी दाने दाने को मोहताज हो गये थे। राजा रायंिसह सहित सैनिक एक दूसरे से बिछुड़  गये थे । राजा रायंिसहं जी व राघोदास जी को बियाबान जगंल मे दूर दूर तक कोई नजर नही आया । दोनो जने सेना को तलाशते हुए एक टीले की ओर चले तो उन्हे टीले पर एक कुटिया नजर आयी दोनो जने उस कुटीया की ओर चले तो कुटिया के आगे एक कुता बैठा दिखाई दिया। दोनो को देख कर कुते ने कान फड़फडाये तो कुटिया के अन्दर ध्यान मुद्रा मे बैठे एक महात्मा
ने दोनो को आवाज देकर कुटिया के अन्दर आने को कहा । दोनो महात्मा के पास निचे जमीन पर बैठ गये । महात्मा जी ने दोनो से बियाबान जगंल मे आने का कारण पूछा तो राजा रायसिंह ने बताया कि उनकी सेना उनसे बिछुड़ गयी है और हम दोनो का भूख प्यास से भी बुरा हाल है। तो महात्मा जी ने अपने कमण्डल की और इशारा कर कहा कि इस कमण्डल मे पानी है दोनो पी लो । राजा राजसिंह ने सोचा की कमण्डल मे दो घूंट पानी से दोनो जनो की प्यास कैसे बुझेगी। महात्मा जी ने फिर कहा कि कमण्डल से पानी पी लो । राजा रायंिसह व राघोदास जी ने उस कमण्डल से पानी पीकर अपनी प्यास बुझा ली लेकिन कमण्डल मे उतना ही पानी शेष देखकर दोनो ने सौचा की ये महात्मा कोई साधारण नही अपितु कोई सिद्ध पुरूष है । तभी महात्मा जी ने राजा रायसिंह से कहा कि बाहर जा कर आवाज लगाओ तुम्हारी सेना भी आ जायेगी। राजा ने बाहर जाकर सेना का आवाज लगायी तो चारो तरफ से सैनिक आते दिखाई देने लगे। तब राजा रायंिसह ने
महात्मा जी से अपनी व सैना के भूखे होने की बात बतायी तो महात्मा जी ने कहा कि कुटिया मे भोजन रखा है सभी खा लो तो राजा रायंिसह ने देखा कि एक थाली मे थोड़ा से भोजन रखा है उससे सभी कैसे खायेगें । लेकिन महात्माजी के चमत्कार के कारण पूरी सेना व दोनो जनो ने आराम से भूख मिटा ली । उस दौरान इस इलाके मे भी भारी भूखमरी फैली हुई थी । राजा रायंिसह ने रावत राघोदास जी से कहा कि क्यो ना इन महात्माजी को अपने क्षैत्र मे ले चले ताकि वहां की भूखमरी दूर हो सके । इस पर दोनो जनो ने महात्मा जी से अपने इलाके मे चलने का निवेदन किया। महात्मा जी बोले कि मेरे 52 रूप है यंहा पर जगलीं जानवर, राक्षस, भूत ,जीन आदि सभी को उनके अनुसार खाना खिलाता हूं। राजा रायसिंह व रावत राघोदास के अधिक निवेदन करने पर महात्मा जी बोले की एक ही शर्त पर मे तुम्हारे साथ जा सकता हूं अगर आप लोग मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाओ तो । और अगर बीच रास्ते मे मुझे कही भी उतार दिया तो उससे आगे एक कदम भी मै नही जाउगां । राजा राजंिसह व रावत राघोदास जी ने महात्मा जी शर्त मान कर उन्हे अपनी पीठ पर बैठा लिया। रावतसर क्षेत्र के गढ ठिकाणे की कांकड़ के पास आकर राजा रायंिसह ने महात्मा जी को उतार कर गढ मे महात्मा जी के लिए उचित स्थान देखने के लिए चल गढ ठिकाणे की और चल पड़े । वापस आकर महात्मा जी ने को गढ ठिकाणे चले का निवेदन किया तो महात्मा जी ने इंकार करते हुए कहा कि मै यहां रहकर क्षैत्र की रक्षा करूंगा। तब राजा रायसिंह व रावत राघोदास जी ने महात्मा जी से कहा कि महाराज इस ईलाके मे भूखमरी बहुत अधिक फैली हुई है तो महात्मा जी ने राजा रायंिसह को मुठठीभर अनाज देते हुए कहा कि गढ ठिकाणे मे एक कड़ाहे मे इस अनाज को पका कर उपर कपड़ा डाल देना और कपड़े को सिर्फ इतना ही हटाना जितने से अनाज निकाला जा सके और गढ ठिकाने पर चढ कर भूखो को खाना खाने के लिए आवाज लगा देना । उसके बाद आसपास के क्षैत्र 54 गांवो के भूखे लोगो द्वारा गढ ठिकाणे की आवाज पर खाना खिलाया जाता था। बताया जाता है कि जब तक गढ ठिकाणे से आवाज लगायी जाती रही तब तक इस क्षैत्र मे कोई भूखा नही रहा।   तब से महात्माजी का नाम क्षेत्रपाल महाराज पड़ा जो अब धीरे धीरे बाबा खेतरपाल जी महाराज के नाम से मशहूर है। धीरे धीरे बाबा के चमत्कारो की सूचना दूर दराज तक फैलने लगी । आज इस क्षैत्र मे वर्ष मे तीन बड़े मैले इस मन्दिर पर लगते है। आसोज, चैत्र व माघ माह मे लगने वाले इन 15 दिवसीय बड़ेे मैलो मे दूर दराज से लोग आते है। मुख्य पुजारी नारायण सिंह सुडा (राठौड़) ने बताया कि उनके वंशज मन्दिर स्थापना के समय से ही बाबा खेतरपाल जी महाराज की पूजा अर्चना कर रहे है। जब इस मन्दिर की स्थापना हुई थी तो इस इलाके मे चारो तरफ कंिटंली झाड़ीया व बियाबान जंगल था । खेतरपाल जी का छोटा सा मन्दिर था जिसमे उनके वंशज प्रतिदिन दिपक जलाते व पूजा करते थे। तब से आज तक इस मन्दिर मे तेल का दिपक 24 घण्टे नियमित जलता रहता है। वही मन्दिर परिसर मे सात अन्य छोटे छोटे मन्दिर है जो बाबा खेतरपाल जी के ही रूप है जिनमे मालांिसह जी , भैरू जी , कोडमदेसर जी, तौलियासर भैरूजी, चलकोई जी चोटिया जी व सात मावड़ीया जी । मन्दिर मे बाबा खेतरपाल जी के धोक लगाने आने वाले श्रद्धालु इन मन्दिरो मे भी धोक अवश्य लगाता है । वही मन्दिर परिसर मे लगी झाड़ीयो पर लाल मोली का धागा बाधं कर मनोकामना पूरी होने के लिए खेतरपाल जी से विनती की जाती है तथा मनोकामना पूरी होने के बाद इन झाड़ीयो मोली के धागे को खोला जाता है। 

दोहा:-
    सातां रिपिया सेर, दाणो मिले न दक्खन में  ।। 
    रोटियां दीनी रैन, रावत राघोदास थै।।

Axact

HINDU ASTHA

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