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हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जलझूलनी एकादशी कहते हैं। इसे परिवर्तिनी एकादशी व डोल ग्यारस आदि नामों से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान वामन की पूजा की जाती है। इस बार यह एकादशी 29 अगस्त 2020, शनिवार को है।इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की घाट पूजा की गई थी। ये पर्व अलग-अलग जगहों पर श्रीकृष्ण जन्म के बाद होने वाले मांगलिक कार्यक्रम जल पूजा, घाट पूजा और सूरज पूजा के रूप में मनाया जाता है।

कहते हैं इस एकादशी में चन्द्रमा अपनी 11 कलाओं में उदित होता है जिससे मन अतिचंचल होता है इसलिए इसे वश में करने के लिए इस दिन पद्मा एकादशी का व्रत रखा जाता है।

💠✴️✳️श्रीकृष्ण की सूरज पूजा (जलवा पूजन) ✳️✴️💠
मान्यताओं के अनुसार इस दिन (श्रीकृष्ण के जन्म के 18 दिन बाद) यशोदाजी का जलवा पूजन किया था। उनके संपूर्ण कपड़ों का प्रक्षालन किया था। उसी परंपरा के अनुसरण में डोल ग्यारस का त्योहार मनाया जाता है।

✳️✴️व्रत करने से लाभ ✴️✳️

इस वृत को करने से जातक को वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जब कोई व्यक्ति अपने प्रतिस्पर्धियों में सबसे आगे निकलना चाहता है। सम्राट के समान उपाधि प्राप्त करना चाहता है तो इस मनोकामना पूर्ति के लिए वाजपेय यज्ञ किया जाता है।मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पद, धन-धान्य की प्राप्ति के लिए यह एकादशी प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए।
 जलझूलनी ग्यारस व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात से ही शुरू करें व ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनकर भगवान वामन की प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथासंभव उपवास करें उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करें संभव न हो तो एक समय फलाहारी कर सकते हैं।इसके बाद भगवान वामन की पूजा विधि-विधान से करें यदि आप पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। भगवान वामन को पंचामृत से स्नान कराएं। स्नान के बाद उनके चरणामृत को व्रती (व्रत करने वाला) अपने और परिवार के सभी सदस्यों के अंगों पर छिड़कें और उस चरणामृत को पीएं। इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पूजन सामग्री अर्पित करें।
विष्णु सहस्त्रनाम का जाप एवं भगवान वामन की कथा सुनें। रात को भगवान वामन की मूर्ति के समीप ही सोएं और दूसरे दिन यानी द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करें जो मनुष्य श्रद्धा के साथ विधिपूर्वक इस व्रत को करते हुए रात्रि जागरण करते हैं उनके समस्त पाप नष्ट हो कर अंत में वे स्वर्गलोक को प्राप्त होते हैं। इस एकादशी की कथा के श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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