संदर्भ: रामचरितमानस – बालकाण्ड
यह प्रसंग उस समय का है जब अयोध्या के राजा दशरथ अपने चारों पुत्रों (राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न) को शिक्षा दिलाने के लिए महर्षि वशिष्ठ के आश्रम भेजते हैं। वहाँ श्रीराम और लक्ष्मण साथ रहते हैं, और गुरु से शास्त्र, धर्म, राजनीति, अस्त्र-शस्त्र, व्यवहार, नीति आदि की शिक्षा लेते हैं।
चौपाइयाँ और उनका विस्तृत अर्थ
१. गुरु गृह गए पढ़न रघुराई। अल्प काल विद्या सब आई॥
अर्थ:
श्रीराम जब गुरुकुल गए तो उन्होंने बहुत ही कम समय में सारी विद्या (ज्ञान) प्राप्त कर ली।
विशेष:
यह पंक्ति केवल श्रीराम की बुद्धिमत्ता की नहीं, उनके दिव्य स्वरूप की ओर संकेत करती है। वह स्वयं भगवान विष्णु हैं, इसलिए उन्हें कोई भी ज्ञान सीखने में समय नहीं लगा। यहाँ यह भी संदेश है कि जहाँ सच्ची लगन और विनम्रता हो, वहाँ ज्ञान स्वयं चला आता है।
२. बूझहिं वेद निगम अस ज्ञाना। धरमं तेज बल सील निधाना॥
अर्थ:
वेद और शास्त्र भी यही कहते हैं कि श्रीराम धर्म, तेज, बल और शील (विनय) के खजाने हैं।
विशेष:
धर्म: सही आचरण, नीति और न्याय।
तेज: दिव्य आभा और आत्मबल।
बल: शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्ति।
शील: नम्रता, सहनशीलता और मर्यादा।
यह चारों गुण एक राजा में होने चाहिए, और श्रीराम उनमें पूर्ण थे — इसीलिए वह मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं।
३. लक्ष्मण सहित सकल गुण ग्राही। विद्या रत परमारथ माही॥
अर्थ:
श्रीराम लक्ष्मण सहित सभी गुणों को आत्मसात कर चुके हैं। वे विद्या में रत हैं और सदा परमार्थ (परहित) के लिए तत्पर रहते हैं।
विशेष:
यहाँ शिक्षा का सही उद्देश्य बताया गया है — सिर्फ आत्मकल्याण नहीं, बल्कि लोककल्याण।
४. शेष सहस्र मुख धरि जो बर्णै। राम चरित सुतंत्र मुनि कर्णै॥
अर्थ:
अगर शेषनाग अपने हजारों मुखों से भी श्रीराम के गुणों का वर्णन करें, तो भी वह पूरा नहीं कर सकते। रामचरित असीम और अनिर्वचनीय है।
विशेष:
यहाँ तुलसीदास जी स्वयं को बहुत विनम्र भाव से कह रहे हैं कि मैं तो एक साधारण कवि हूँ, श्रीराम की महिमा का वर्णन करना मेरे लिए असंभव है।
इस प्रसंग से क्या सीखें?
गुरु की शिक्षा का महत्व:
– ज्ञान के लिए शिष्य को गुरु के पास जाना होता है। राम जैसे भगवान भी गुरुकुल गए, यह एक बड़ा संदेश है।
अल्प समय में विद्या प्राप्ति का रहस्य:
– अगर मन स्थिर, शुद्ध और एकाग्र हो, तो थोड़े समय में भी बड़ी विद्या पाई जा सकती है।
ज्ञान का उद्देश्य:
– सच्चा ज्ञान वही है जो स्वयं को और समाज को सुधारने में लगे।
व्यक्तित्व के आदर्श गुण:
– धर्म, तेज, बल और शील — एक संपूर्ण मानव के लिए आवश्यक चार स्तंभ।