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आज का पंचांग | Aaj ka Panchang | 25 JULY 2025

 


 दिनांक - 25 जुलाई 2025
  दिन -  शुक्रवार
  विक्रम संवत 2082
  शक संवत -1947
  अयन - दक्षिणायन
  ऋतु - वर्षा ॠतु 
  मास - श्रावण
  पक्ष - शुक्ल 
  तिथि - प्रतिपदा रात्रि 11:22 तक तत्पश्चात द्वितीया
 नक्षत्र - पुष्य शाम 04:00 तक तत्पश्चात अश्लेशा 
  योग - वज्र सुबह 07:28 तक तत्पश्चात सिद्धि
  राहुकाल - सुबह 11:06 से दोपहर 12:45 तक 
  सूर्योदय - 05:53
  सूर्यास्त -  07:19
  दिशाशूल - पश्चिम दिशा मे
  *व्रत पर्व विवरण -

  विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

  चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)

  चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।

      

  व्यतिपात योग  

  26 जुलाई 2025 शनिवार को प्रात: 05:32 से 27 अगस्त प्रात: 04:06 तक व्यतिपात योग है।

  व्यतिपात योग की ऐसी महिमा है कि उस समय जप पाठ प्राणायम, माला से जप या मानसिक जप करने से भगवान की और विशेष कर भगवान सूर्यनारायण की प्रसन्नता प्राप्त होती है जप करने वालों को, व्यतिपात योग में जो कुछ भी किया जाता है उसका १ लाख गुना फल मिलता है।

  वाराह पुराण में ये बात आती है व्यतिपात योग की।

       

  श्रावण में रुद्राभिषेक करने का महत्व  

 “रुद्राभिषेकं कुर्वाणस्तत्रत्याक्षरसङ्ख्यया, प्रत्यक्षरं कोटिवर्षं रुद्रलोके महीयते। पञ्चामृतस्याभिषेकादमृत्वम् समश्नुते।। ”

  श्रावण में रुद्राभिषेक करने वाला मनुष्य उसके पाठ की अक्षर-संख्या से एक-एक अक्षर के लिए करोड़-करोड़ वर्षों तक रुद्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पंचामृत का अभिषेक करने से मनुष्य अमरत्व प्राप्त करता है।

 

  श्रावण मास में भूमि पर शयन  

  "केवलं भूमिशायी तु कैलासे वा समाप्नुयात" - स्कन्दपुराण

  श्रावण मास में भूमि पर शयन करने से मनुष्य कैलाश में निवास प्राप्त करता है।

        

  पार्थिव शिवलिंग  

  जो पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर एकबार भी उसकी पूजा कर लेता है, वह दस हजार कल्प तक स्वर्ग में निवास करता है, शिवलिंग के अर्चन से मनुष्य को प्रजा, भूमि, विद्या, पुत्र, बान्धव, श्रेष्ठता, ज्ञान एवं मुक्ति सब कुछ प्राप्त हो जाता है | जो मनुष्य ‘शिव’ शब्द का उच्चारण कर शरीर छोड़ता है वह करोड़ों जन्मों के संचित पापों से छूटकर मुक्ति को प्राप्त हो जाता है |’

  कलियुग में पार्थिव शिवलिंग पूजा ही सर्वोपरि है ।
कृते रत्नमयं लिंगं त्रेतायां हेमसंभवम्
द्वापरे पारदं श्रेष्ठं पार्थिवं तु कलौ युगे (शिवपुराण)

  शिवपुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग का पूजन सदा सम्पूर्ण मनोरथों को देनेवाला हैं तथा दुःख का तत्काल निवारण करनेवाला है |

  पार्थिवप्रतिमापूजाविधानं ब्रूहि सत्तम  ॥
येन पूजाविधानेन सर्वाभिष्टमवाप्यते  ॥

  अग्निपुराण के अनुसार

  त्रिसन्ध्यं योर्च्चयेल्लिङ्गं कृत्वा विल्वेन पार्थिवम् ।
शतैकादशिकं यावत् कुलमुद्‌धृत्य नाकभाक् ।। ३२७.१५ ।। अग्निपुराण

  जो मनुष्य प्रतिदिन तीनों समय पार्थिव लिङ्ग का निर्माण करके बिल्वपत्रों से उसका पूजन करता है, वह अपनी एक सौ ग्यारह पीढ़ियों का उद्धार करके स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।

  स्कंदपुराण के अनुसार
प्रणम्य च ततो भक्त्या स्नापयेन्मूलमंत्रतः॥
ॐहूं विश्वमूर्तये शिवाय नम॥
इति द्वादशाक्षरो मूलमंत्रः॥ ४१.१०२ ॥ 

  "ॐ हूं विश्वमूर्तये शिवाय नमः"  यह द्वादशाक्षर मूल मंत्र है।  इससे शिवलिंग को स्नान कराना चाहिए।