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सावन मास में शिव पूजा: विधि, मंत्र, सामग्री और विशेष कालों का महत्व



  एक पूर्ण शास्त्रसम्मत, आध्यात्मिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन।

 भूमिका:

शिव इस सृष्टि के ज्ञात सबसे प्राचीनतम देवता हैं जिनका प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन में भी मिला है। शिव के मंदिर और शिवलिंग समस्त पृथ्वी पर प्राप्त हैं,चाहे वह जॉर्जिया अज़रबैजान केन्या आयरलैंड हो या चीन! सभी जगह शिव पूजनीय है। सभी आगम निगम के स्रोत शिव ही हैं।। रामचरितमानस भी वही सुनाते नजर आते हैं। तो सभी तंत्र मंत्र के ग्रंथ हों, या विज्ञान भैरव तंत्र हो, शिव ही इनका ज्ञान हमें देते नजर आते हैं। शास्त्र और शक्ति के लिए सभी को शिव की शरण में ही आना पड़ा है। चाहे वह देव हो या असुर हों।  भगवान राम को भी रावण को जीतने से पूर्व रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करनी पड़ी थी जहां जिस रूप में शिव को स्थापित कर दिया जाता है वे उसी रूप में जाने जाते हैं। राम ने स्थापित कर दिया तो वह रामेश्वरम है, झरने के नीचे हैं तो वे झरनेश्वर हैं।

शिव भोले हैं, वे देवों के देव महादेव भी हैं उनको कोई विशिष्ट सामग्री पूजा में अभीष्ट नहीं है। पूजा की कोई सामग्री ना होने पर मात्र धतूरा या बेलपत्र चढ़ाने पर भी वे भरपूर फल प्रदान कर देते हैं। अगर कुछ नहीं है तो वह मात्र जल से पूजा पर भी भक्तों पर रीझ जाते हैं।

 शिव महादयालु और शरणागत वत्सल हैं। शिव की कृपा हो जाए तो वह भाग्य के लिखे को भी पलट देते हैं। शिव से क्रूर और कुरूप भी कोई नहीं तो उन से अधिक सजीला सुंदर और गौर भी कोई नहीं।। वे कदाचित सृष्टि के सबसे सुंदर पुरुष भी हैं तभी तो उनको कर्पूर गौरम कहा जाता है। शिव प्रकृति प्रेमी हैं वे प्राकृत वेश और  परिवेश में ही हिम आच्छादित कैलाश पर्वत के निवासी हैं। उनसे अधिक अपनी पत्नी से प्रेम करने वाला भी सृष्टि में कोई नहीं। शिव सर्वत्र हैं, शिव सवर्त्र पूजित है। शिव सदाशिव हैं, महादेव हैं, देवो के देव हैं, भूतनाथ हैं, भोलेनाथ हैं, नीलकंठ हैं, वे काल से परे महाकाल हैं,विश्वेश्वर हैं। शिव मृत्युंजय हैं।

सावन का महीना शिवभक्ति की अमृतवेला है। यह मास भगवान शिव को अतिप्रिय है और इस काल में की गई पूजा, व्रत, जप और ध्यान हजारगुना फल देती है। शिवपुराण, शिवस्तुति, शिव महापुराण, तंत्र मंत्र ग्रंथ,स्कंदपुराण और गरुड़पुराण में इस माह का विशेष महत्व बताया गया है।

शास्त्र कहते हैं:

"सावनमासे शिवपूजा फलं सहस्त्रगुणं भवेत्।"

 — सावन में की गई शिवपूजा सहस्त्रगुणा फलदायी होती है।

सावन मास में शिव जी पूजा की मान्यता, महत्व और लाभ

पूजा की मान्यता

सावन मास (श्रावण) भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। धार्मिक मान्यता है कि इस महीने में शिव जी की पूजा करने से वे जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।


पुराणों के अनुसार, सावन के दौरान भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथ में होता है। इस कारण इस माह की पूजा का विशेष महत्व है।

देव शयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने तक पृथ्वी के संचालन का भार भगवान शिव संभालते हैं। यह अवधि "चातुर्मास" कहलाती है।

आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देव शयनी एकादशी) – 6 जुलाई 2025 से पृथ्वी का शासन भगवान शिव संभालेंगे जो  कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी/देव उठनी एकादशी) – 31 अक्टूबर 2025 तक भगवान श्री हरि के देव उठनी एकादशी तक रहेगा। 

चातुर्मास में विवाह, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते।

समापन: देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु पुनः जाग्रत होकर सृष्टि का संचालन अपने हाथ में लेते हैं।

माता पार्वती ने भी सावन माह में कठोर तपस्या कर शिव जी को पति रूप में प्राप्त किया था, इसलिए यह माह शिव-पार्वती की आराधना के लिए भी शुभ माना जाता है।

सावन मास में पूजा का महत्व

शिवलिंग का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक इस माह में विशेष फलदायी माने जाते हैं।


सावन के सोमवार को व्रत और पूजा करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इससे जीवन के कष्ट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

यह माह आध्यात्मिक उन्नति, स्वास्थ्य, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम माना गया है।

लाभ :-मनोकामना पूर्ति: भक्तों की इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन में शांति आती है।

कष्टों का निवारण: जीवन के कष्ट, रोग, बाधाएं और दरिद्रता दूर होती है।

सुख-समृद्धि: परिवार में सुख, वैभव, धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

आध्यात्मिक लाभ: साधना और भक्ति से मन को शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

सावन मास में शिव जी की पूजा करने से भक्तों को विशेष पुण्य, सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह माह शिव भक्ति और साधना के लिए अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है।


 पूजा की सामग्री और उसका महत्व:

पूजन हेतु अभीष्ट सामग्री:-शिवपूजा हेतु आवश्यक सामग्री की लिस्ट (आवश्यकता अनुसार)

शिवलिंग या शिव मूर्ति, बेलपत्र (बिल्व पत्र), जल, दूध, दही, घी, शहद, शक़्क़र, गंगाजल, गुलाबजल, चंदन पाउडर, हल्दी, अक्षत (कच्चा चावल), भस्म (विभूति), धूप, अगरबत्ती, कपूर, दीपक (मिट्टी या तेल का दिया), माचिस, माला (रुद्राक्ष या फूलों की), सुपारी, इलायची, लौंग, फूल (सफेद जैसे चमेली, कमल, गेंदा), फल, मिठाई, नारियल, मुरमुरे, पंचमेवा, इत्र, सुगंधित तेल, सफेद या पीला वस्त्र (अंगवस्त्र, जनेऊ), माता की चुनरी, मोली, बंदनवार, गाय के गोबर के उपले (हवन सामग्री के लिए), कपास, रुई, सिंदूर, गुलाल, रंगोली, धतूरा के पत्ते और फूल, भांग (कुछ पूजा विधियों में), शिव पूजा पुस्तिका, शिव फोटो


सामग्री

अर्थ और फल

गंगाजल

पापों का नाश, शुद्धि और मोक्ष

दूध

मानसिक शांति और स्वास्थ्य

दही

बुद्धि, संतान, सौभाग्य में वृद्धि

घी

तेज, नेत्रज्योति, दिव्यता

शहद

वाणी में माधुर्य, मनोबल

शक्कर / मिश्री

प्रेम और संतुलन

इत्र / चंदन

मन प्रसन्न, ध्यान में सहायक

बेलपत्र

शिवप्रिय, पाप विनाशक

धतूरा / भांग

भय नाशक, साधना सिद्धि हेतु

भस्म (विभूति)

वैराग्य, आत्मशुद्धि

अक्षत (चावल)

पूर्ण समर्पण और पूर्ति का प्रतीक

फल / मिठाई (नैवेद्य)

                                               

संतुष्टि और भोग का प्रतीक



पूजन-विधि (क्रमवार):-

स्थान और स्वयं की शुद्धि करें, शिवलिंग या चित्र स्थापित करें।

संकल्प लें:


 "ॐ शिवाय नमः। मम सर्वपापक्षयपूर्वकं शिवप्रीत्यर्थं सावन मासे सोमवारे व्रतमहम् करिष्ये।"


पंचामृत से शिवलिंग स्नान कराएं: दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।

गंगाजल से जलाभिषेक करें, मंत्र बोलते हुए:


 "ॐ नमः शिवाय"

एक-एक करके सामग्री चढ़ाएं (बेलपत्र, पुष्प, भस्म, इत्र, फल, दीप, धूप)।

शिव मंत्रों का जप करें (नीचे देखें)।

आरती करें, भोग अर्पण करें।

पूजन समर्पण मंत्र बोलें (नीचे देखें)।

शांति मंत्र के साथ पूजा का समापन करें।


मुख्य शिव मंत्र और लाभ:


पंचाक्षरी मंत्र:

ॐ नमः शिवाय

(यह सबसे शक्तिशाली और सरल मंत्र है जो मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा देता है)

शिव गायत्री मंत्र:

ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥

(यह मंत्र ज्ञान, मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ाता है)

ॐ नमः शिवाय शान्ताय

(यह मंत्र विशेष रूप से चिंता और तनाव से मुक्ति दिलाता है)

मृत्युंजय मंत्र:

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

(इस मंत्र से रोग-व्याधि दूर होती है और जीवन में शांति आती है)

ॐ नमो भगवते रुद्राय

(यह मंत्र भय और संकटों से मुक्ति दिलाता है और मन को स्थिर करता है)

इसके अतिरिक्त शिव महिम्न स्त्रोत्र, रुद्र गायत्री, रुद्राष्टाध्यायी, छोटी रुद्री आदि अपनी अभिरुचि या इष्ट मंत्रो के साथ पूजन का विधान है।


 शिवलिंग पर विभिन्न द्रवों से अभिषेक और उनके विशेष लाभ

 (सावन मास और विशेष पूजा अवसरों के लिए)

अभिषेक द्रव्य

लाभ / फल

दूध

मानसिक शांति, चित्त की स्थिरता, सौभाग्य में वृद्धि

छाछ (मट्ठा)

क्रोध, पित्त और दोषों का शमन, मधुर स्वभाव की प्राप्ति

गंगाजल

समस्त पापों से मुक्ति, शुद्धि, मोक्ष की प्राप्ति

गन्ने का रस

धन, समृद्धि, व्यापार में वृद्धि, लक्ष्मी कृपा

गुलाब जल

प्रेम, सौंदर्य, आकर्षण, मनोबल व दांपत्य सुख

केवड़ा जल

शीतलता, तनाव मुक्ति, ध्यान और आंतरिक शांति

इत्र / सुगंधित जल

मनोवांछित सिद्धि, देवी-देवताओं की विशेष कृपा

आम का रस

संतान सुख, वंशवृद्धि, प्रेमपूर्ण संबंधों की वृद्धि

सरसों का तेल

तांत्रिक दोष निवारण, नज़र दोष, नकारात्मक ऊर्जा की शुद्धि


 टिप्स:

प्रत्येक अभिषेक के साथ "ॐ नमः शिवाय" या "महामृत्युंजय मंत्र" का जप करें।

अभिषेक का उद्देश्य केवल रस अर्पण नहीं, भावनाओं की अभिव्यक्ति है।

 पूजन समर्पण मंत्र:

"कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा...

 नारायणाय समर्पयामि॥"

या

 "एषा पूजा सर्वदेवस्वरूपाय श्रीमहादेवाय समर्पिताम्।"


 शांति मंत्र:

पूजा समाप्ति के बाद-

ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वॅंशान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि।। ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ 

इस मंत्र का अर्थ है: "द्यौ (स्वर्ग) में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हो, जल में शांति हो, औषधियों में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, सभी देवताओं में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, और शांति ही शांति हो। 



 सावन सोमवार की व्रत विधि:

ब्रह्ममुहूर्त में उठें, स्नान करें

शिवलिंग पर जल चढ़ाएं

“ॐ नमः शिवाय” का 108 बार जप करें

दिनभर फलाहार या एक समय भोजन

संध्या में दीप, धूप, आरती

रात्रि में शिवचालीसा, महामृत्युंजय मंत्र


 शिव पूजन के विशेष काल और उनका महत्व:

काल

समय सीमा

विशेष फल

प्रदोष काल

सूर्यास्त से ± 90 मिनट

शिव-पार्वती संगम काल, अत्यंत शुभ

निशीत काल

निशीथ काल पूजा समय- मध्यरात्रि 12:09 से 12:59 के बीच।

संकल्प, व्रत और ध्यान के लिए श्रेष्ठ

महानिशीथ काल

रात 1.00 AM–3.00  AM

तांत्रिक, रहस्यमयी साधना, रोग-भय विनाश


 प्रदोष काल में "ॐ नमः शिवाय" का 108 बार जप करें।

  महानिशीथ काल में महामृत्युंजय मंत्र से अकाल मृत्यु का निवारण होता है।


धन प्राप्ति के लिए सावन में शिव पूजा के विशेष प्रयोग:-

सोमवार के दिन पूजा के बाद गरीबों या ब्राह्मणों को दूध, दही, चावल, चीनी व दक्षिणा का दान करें। इससे धन वृद्धि और सुख-समृद्धि मिलती है।

शिवलिंग पर कच्चा दूध, शहद, घी, शक्कर और गंगाजल से अभिषेक करें, साथ ही ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करें।

बेलपत्र पर चंदन से “ॐ नमः शिवाय” लिखकर शिवलिंग पर अर्पित करें।

पूजा के बाद सफेद मिठाई या मिश्री का भोग लगाएं और प्रसाद स्वरूप वितरित करें।

भगवान शिव को शमी पत्र, कमल गट्टा, काले तिल, और धतूरा चढ़ाना भी धन-समृद्धि के लिए शुभ माना गया है।

शिवलिंग पर पंचामृत अभिषेक करें और अंत में गंगाजल चढ़ाएं।

प्रत्येक बेलपत्र पर “ॐ नमः शिवाय” लिखकर चढ़ाएं।

अब चांदी का सिक्का या गोमती चक्र शिवलिंग के पास रखकर यह मंत्र बोलें:

 "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं नमः शिवाय श्रीं ह्रीं क्लीं धनं मे देहि देहि स्वाहा॥"

(11 या 21 बार)

अंत में चांदी का सिक्का/गोमती चक्र घर के तिजोरी/धनस्थान में रखें।



 . सावन के सोमवार को “श्रीमहाकाल मंत्र” जप प्रयोग


 "ॐ महाकालाय विद्महे महातांडवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥"

इस महामंत्र का 108 बार जाप करें


पीली सरसों से दीपक लगाएं


शिवलिंग पर चंदन और सफेद पुष्प अर्पण करें


इससे अचानक धन लाभ, बंद व्यापार की वृद्धि और शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है।


  बेलपत्र धनयंत्र प्रयोग:-


21 बेलपत्र लें, हर पत्ते पर काजल से “श्रीं” बीजमंत्र लिखें, शिवलिंग पर अर्पित करते हुए कहें:

 "ॐ श्रीं शिवाय श्रीं धनं कुरु कुरु स्वाहा।"

इस प्रयोग से दरिद्रता दूर होती है और लक्ष्मी निवास स्थायी होता है।


. “नागकेसर और प्रियंगु इत्र” का प्रयोग शिव पूजन में

 विशेष: नागकेसर और प्रियंगु को “श्री-संवर्धक पुष्प” माना गया है।

सोमवार को शिवलिंग पर नागकेसर पुष्प और उसका इत्र चढ़ाएं।


प्रियंगु इत्र से चंदन बनाकर शिव को अर्पण करें। साथ में यह मंत्र पढ़ें:

 "ॐ नमः शिवाय श्रीं नमः शिवाय ह्रीं नमः शिवाय क्लीं नमः शिवाय॥"

इससे न केवल धन, बल्कि मान-सम्मान और प्रभाव की भी प्राप्ति होती है।


रात्रि में "महानिशीथ धनाकर्षण मंत्र" प्रयोग


समय: रात्रि 12:15 – 1:00 (महानिशीथ काल)


मंत्र:-  "ॐ रुद्राय धनदाय नमः॥" (108 बार रुद्राक्ष माला से)

दीपक में घी डालें

गुलाब के पुष्प और गुड़ शिवलिंग पर अर्पण करें.

यह प्रयोग रात्रि में आर्थिक बाधाओं को दूर करता है


 अतिरिक्त सुझाव (शिव कृपा से स्थायी लक्ष्मी हेतु):


रोज “शिव चालिसा” और “शिव महिम्न स्तोत्र” का पाठ करें

सावन के किसी भी सोमवार को 11 निर्धनों को भोजन कराएँ

शिवलिंग पर प्रतिदिन एक मुद्रा (सिक्का) चढ़ाएँ और सप्ताहांत में दान करें.

घर के ईशान कोण में शिवलिंग या चित्र स्थापित करके नियमित पूजन करें


श्रावण मास में भगवान शिव पर श्रद्धा, विधिपूर्वक पूजन और मंत्रजप से न केवल धन, अपितु जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति सहज रूप से होती है।

"शिव कृपा बिना लक्ष्मी भी रुकती नहीं — शिव प्रसन्न तो दरिद्रता भी दूर भागे।"


 शिव पूजन में धन प्राप्ति का विशेष और अनुभूत प्रयोग:-

🎋रात्रि में नित्य शिवलिंग के नीचे योनि के पास दीपक जलाएं इससे धन की प्राप्ति होती है।।


विशेष सावधानियां

शिव पूजा में हल्दी, रोली और तुलसी पत्र का प्रयोग न करें।

पूजा के बाद शिव चालीसा या सोमवार व्रत कथा का पाठ करें और आरती करें




सावन मास शिव को समर्पित आत्मशुद्धि और मोक्षमार्ग है।

 जो भक्त श्रावण मास में श्रद्धा से शिव पूजन, व्रत और ध्यान करता है, वह इस जीवन में सुख और परलोक में शिवधाम को  प्राप्त करता है।

भगवान शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं, वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिव भक्त हैं। शिव का दर्शन कहता है यथार्थ में जिओ, वर्तमान में जिओ,आइंस्टीन से पहले भगवान शिव ने ही कहा था की कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। भोलेनाथ शिव ज्ञान, भोग, शस्त्र, शास्त्र, वैराग्य और ऐश्वर्य के साथ मोक्ष के देवता हैं। वे अनादि हैं वे अनंत है! शिव सर्वत्र हैं।


दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम्। अघोरं पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥

"बेलपत्रं जलं दत्तं भक्त्या च यः समर्पयेत्।

 तस्य पुण्यफलं वाच्यं ब्रह्माद्यैरपि दुर्लभम्॥"



शिव समान दाता नहीं विपत विदारण हार

लज्जा मोरी राखियो नंदी के असवार।।

एक दोय तीनो समय जपै जो तेरो नाम

सब पापन से मुक्त हो, बसें सदा शिव धाम।।


 — शिवपुराण


हर हर महादेव!

ॐ नमः शिवाय। जय साम्ब शिवाय।


©® पंकज ओझा RAS

  धर्मध्वजा वाहक