गणेश चतुर्थी पर विशेष लेख
भारत एक ऐसा देश है जहाँ विविधता में एकता की मिसाल देखने को मिलती है। यहाँ हर त्योहार सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं होता, बल्कि समाज को जोड़ने वाला एक सांस्कृतिक उत्सव होता है। ऐसा ही एक पर्व है गणेश चतुर्थी, जिसे देशभर में विशेष उल्लास, भक्ति और धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी का महत्त्व
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान गणेश को "विघ्नहर्ता" (बाधाओं को दूर करने वाले) और "बुद्धि के देवता" के रूप में पूजा जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस दिन भगवान गणेश पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। इसलिए इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है और लोग नये कार्यों की शुरुआत भी गणेश पूजन से ही करते हैं।
उत्सव की शुरुआत और परंपराएँ
गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है, जो आमतौर पर अगस्त या सितंबर माह में आती है। इस दिन से लेकर अनंत चतुर्दशी तक (10 दिन) तक भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की जाती है।
लोग घरों में मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी गणेश प्रतिमाओं की स्थापना करते हैं।
खासकर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं।
हर दिन गणपति बप्पा को भोग लगाया जाता है, जिसमें मोदक, लड्डू, और दूर्वा घास विशेष रूप से चढ़ाई जाती है।
भजन, कीर्तन, नृत्य, झांकियाँ और सामाजिक सेवा जैसे कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं।
समाज और एकता में योगदान
गणेश चतुर्थी न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इस पर्व को सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की थी, जिससे लोगों को एकजुट किया जा सके। आज भी यह त्योहार हर वर्ग, जाति और समुदाय के लोगों को एक साथ लाता है।
गणेश विसर्जन: विदाई की परंपरा
उत्सव के अंतिम दिन, जिसे अनंत चतुर्दशी कहा जाता है, गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। भक्तगण नाचते-गाते, "गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ" के जयघोष के साथ प्रतिमा को जल में विसर्जित करते हैं। यह क्षण भावुक होता है, पर साथ ही अगली बार फिर भक्ति और उल्लास से मिलने की आशा भी देता है।
पर्यावरण की चिंता
आज के समय में जब पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली चीजों पर ध्यान दिया जा रहा है, तो कई लोग इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का चयन कर रहे हैं। यह बदलाव न केवल प्रकृति के लिए अच्छा है, बल्कि यह हमारी परंपराओं को और अधिक सतत (sustainable) बनाने की दिशा में एक कदम है।
गणेश चतुर्थी सिर्फ पूजा-पाठ का पर्व नहीं है, यह सामूहिक उत्सव, भक्ति, संस्कृति, और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि हर शुरुआत में विश्वास और समर्पण होना चाहिए और हर अंत नई शुरुआत की तैयारी है।
