आज का हिन्दू पंचांग
दिनांक - 11 सितम्बर 2025
दिन - गुरूवार
विक्रम संवत 2082
शक संवत -1947
अयन - दक्षिणायन
ऋतु - शरद ॠतु
मास - आश्विन
पक्ष - कृष्ण
तिथि - चतुर्थी दोपहर 12:45 तक तत्पश्चात पंचमी
नक्षत्र - अश्विनी दोपहर 01:58 तक तत्पश्चात भरणी
योग - ध्रुव शाम 05:05 तक तत्पश्चात व्याघात
राहुकाल - दोपहर 02:08 से शाम 03:40 तक
सूर्योदय - 06:18
सूर्यास्त -06:36
दिशाशूल - दक्षिण दिशा मे
व्रत पर्व विवरण - पंचमी का श्राद्ध,भरणी श्राद्ध
विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
16 दिन चलने वाला महालक्ष्मी व्रत पारण 14 या 15 सितम्बर को करे पूजन की संपूर्ण जानकारी
भरणी श्राद्ध
11 सितम्बर 2025 गुरुवार को भरणी नक्षत्र होने के कारण भरणी श्राद्ध है। भरणी नक्षत्र के देवता यमराज होने के कारण भरणी श्राद्ध का विशेष महत्व है। सामान्यतः आश्विन पितृपक्ष (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार भाद्रपद) में चतुर्थी अथवा पंचमी को ही भरणी नक्षत्र आता है। कहा जाता है लोक - लोकान्तर की यात्रा जन्म, मृ्त्यु व पुन: जन्म उत्पत्ति का कारकत्व भरणी नक्षत्र के पास है अतः भरणी नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से पितरों को सद्गति मिलती है। महाभरणी श्राद्ध में कहीं भी श्राद्ध किया जाए, फल गयाश्राद्ध के बराबर मिलता है। यह श्राद्ध सभी कर सकते हैं।
भरणी नक्षत्र में श्राद्ध करने से श्राद्धकर्ता को उत्तम आयु प्राप्त होती है।
भरणी नक्षत्र में ब्राह्मण को काले तिल एवं गाय का दान करने से सद्गति प्राप्ति होती है व कष्ट कम होता है।
जानिए पुराणों के अनुसार श्राद्ध का महत्व
कुर्मपुराण : कुर्मपुराण में कहा गया है कि 'जो प्राणी जिस किसी भी विधि से एकाग्रचित होकर श्राद्ध करता है, वह समस्त पापों से रहित होकर मुक्त हो जाता है और पुनः संसार चक्र में नहीं आता।'
गरुड़ पुराण : इस पुराण के अनुसार 'पितृ पूजन (श्राद्धकर्म) से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, वैभव, सुख, धन और धान्य देते हैं।
मार्कण्डेय पुराण : इसके अनुसार 'श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या सुख, राज्य, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।
ब्रह्मपुराण : इसके अनुसार 'जो व्यक्ति श्रद्धा-भक्ति से श्राद्ध करता है, उसके कुल में कोई भी दुःखी नहीं होता।' साथ ही ब्रह्मपुराण में वर्णन है कि 'श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक किए हुए श्राद्ध में पिण्डों पर गिरी हुई पानी की नन्हीं-नन्हीं बूंदों से पशु-पक्षियों की योनि में पड़े हुए पितरों का पोषण होता है। जिस कुल में जो बाल्यावस्था में ही मर गए हों, वे सम्मार्जन के जल से तृप्त हो जाते हैं।
पंडित रामगोपाल डोलियां
