महालय श्राद्ध तिथि निर्णय
या तिथिर्यस्य मासस्य मृताहे तु प्रवर्तते।
सा तिथि: प्रेतपक्षस्य पूजनीया प्रयत्नतः।।
श्राद्धपक्ष में मृत्युतिथि/दाहतिथि के दिन श्राद्ध करना श्रेयस्कर है। श्राद्ध की तिथियां निम्नानुसार हैं -
1. पूर्णिमा का- 07 सितम्बर रविवार। 12.57 PM चन्द्र ग्रहण का सूतक लगने से पूर्व।
2. प्रतिपदा का- 08 सितम्बर सोमवार
3. द्वितीया का- 9 सितम्बर मंगलवार
4. तृतीया का- 10 सितम्बर बुधवार
5. चतुर्थी का- 11 सितम्बर गुरुवार 12.45 PM पूर्व
6. पंचमी का- 11 सितम्बर गुरुवार 12.45 पश्चात्
7. षष्ठी का - 12 सितम्बर शुक्रवार 9.58 पश्चात्
8. सप्तमी का- 13 सितम्बर शनिवार
9. अष्टमी का- 14 सितम्बर रविवार
10. नवमी का- 15 सितम्बर सोमवार
11. दशमी का- 16 सितम्बर मंगलवार
12. एकादशी का- 17 सितम्बर बुधवार
13. द्वादशी का- 18 सितम्बर गुरुवार
14. त्रयोदशी का- 19 सितम्बर शुक्रवार
15. चतुर्दशी का 20 सितम्बर शनिवार
16. अमावस्या का 21 सितम्बर रविवार
17. मातामह का 22 सितम्बर सोमवार, आवश्यकता में दौहित्र द्वारा करणीय।
विशेष वचन -
पौर्णमासीमृतस्यापि पौर्णमास्यामेव कुर्यादिति श्राद्धकाशिकाकार:।
चतुर्दश्यां मृतस्यापि चतुर्दश्यां श्राद्धं कुर्यात्।
मृततिथावेव क्रियमाणे नन्दादितिथिर्न वर्जनीया।
अत्र देशाचाराद् व्यवस्था ज्ञेया।
लोकाचार और कुल परम्परा के अनुसार श्राद्धादिक करने से अक्षय्य पुण्य प्राप्त होता है।
महालय श्राद्ध प्रतिवर्ष पार्वण विधि से करने चाहिए।-
पार्वणेनैव विधिना तत्र श्राद्धं विधीयते।
पार्वणश्राद्ध में अपराह्न व्यापिनी तिथि ग्रहण करनी चाहिए -
पार्वण श्राद्धेऽपराह्नव्यापिनी ग्राह्या इत्युक्त्वात् पार्वण श्राद्धे पूर्णिमा अत्र अपराह्न व्यापिनी ग्राह्या।
लोकाचार में पार्वण श्राद्ध मृतक को पितरों में मिलाने के वर्ष में ही किया जाता रहा है।
अन्य वर्षों में एकोदिष्ट विधि से मृत्युतिथि के दिन एक ब्राह्मण को भोजन करवाने की विशुद्ध सी परम्परा है।
पार्वण श्राद्ध में दिन के दो भाग पूर्वाह्न और अपराह्न मानते हुए दिन के बारह बजे बाद की तिथि को ग्रहण करें।-
प्रहरद्वयादूर्ध्वमपराह्न इति ज्ञापयति।
अर्थात् दो प्रहर के बाद अपराह्न कहा गया है।
और भी कहा है -
श्रुतौ स्मृतौ च पूर्वाह्नापराभ्यामपि दिनविभागादित्यन्तम्। तस्माद्रात्रे: पूर्वापरार्द्धरात्रविभागवदह्नोऽपि पूर्वाह्नापराह्नविभागेनैव द्विधाविभाग:।
इसी पक्ष को महर्षि मनु सुदृढ़ कर रहे हैं-
यथा चैवापर: पक्ष: पूर्वपक्षाद्विशिष्यते।
तथा श्राद्धस्य पूर्वाह्नादपराह्नो विशिष्यते।।
अतः दोपहर (द्विप्रहर) बाद अपराह्न है। ज्यों ही सूर्य मध्य दिन से पश्चिम की ओर ढलना प्रारम्भ होता है तत्काल अपराह्न प्रारम्भ हो जाता है। और पार्वण श्राद्ध के लिए उस समय की तिथि को ही ग्रहण करना चाहिए।
दिन के पांच भाग कर अपराह्न काल मानना निर्मूल है। इसमें त्रुटिपूर्ण व्यवस्था में सुधार करना ही होगा। पांच भाग तो सायाह्न में श्राद्ध निषेध के लिए ग्रहण किया गया है।-
सायाह्नस्त्रिमुहूर्त्त: स्याच्छ्राद्धं तत्र न कारयेत्।
जो केवल एक ब्राह्मण को भोजन करवाते हैं उनके लिए व्यवस्था -
जो महाशय श्राद्धों में अपनों की मृत्युतिथि को पार्वण न करवाकर एक ही व्यक्ति को भोजन करवाते हैं उन्हें दिन के तीन भाग- पूर्वाह्न मध्याह्न अपराह्न मानते हुए मध्याह्न में ब्राह्मण को श्राद्ध भोजन करवाना चाहिए।
दिन के तीन भाग-
पूर्वापराह्नयोरेकैकदेशाभ्यां मध्यन्दिनं पृथक् कृत्वैकोद्दिष्टादिश्राद्ध विधानार्थम्।
अर्थात् एक ब्राह्मण को भोजन करवाना है तो मध्याह्न में ही करवाना चाहिए। न कि अपराह्न में। स्थूल रूप से मध्याह्न समय मध्यदिवस से डेढ़ घंटे पूर्व और डेढ़ घंटे बाद तक रहता है।
क्षमा करें ये मेरे वचन नहीं है ये शास्त्रीय आदेश हैं। आप सभी विद्वज्जनों से विनम्र अनुरोध है कि इन वचनों का पूर्ण मनोयोग से चिन्तन कर पालन करेंगे तो ही माननीय पंचांगकर्ता भी श्राद्धकाल पर पुनर्विचार करेंगे।।
पूर्णिमा का श्राद्ध या अन्य श्राद्ध पूर्णिमा को नहीं कर सकें तो अमावास्या को करने के आदेश हैं। यह एक वैकल्पिक व्यवस्था है न कि अनिवार्यता।
मृत्युतिथि/दाहतिथि पर पार्वण या एकोदिष्ट श्राद्ध करने वालों के लिए भरणी कृतिका मघा मातृनवमी शस्त्रहत आदि के श्राद्ध का कोई औचित्य नहीं है। और गृहस्थी के लिए संन्यासियों के श्राद्ध का भी कोई औचित्य नहीं है।
यदि कोई मृत्यु तिथि या दाहतिथि का श्राद्ध नहीं कर पाता है तो भरणी आदि के श्राद्ध का शास्त्रीय विधान जानने वाले योग्य आचार्य से श्राद्ध सम्पन्न कराया जा सकता है। परन्तु निषिद्ध नन्दादि तिथ्यादि में न करें।
ये निषिद्ध श्राद्ध भी पंचांगों में लिखे रहते है पर इनका आम आदमी से कोई संबंध नहीं है। ये सब विशेष श्राद्ध हैं।
सभी को अपने पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। जो भी दिवंगत आत्मा हैं वे पितर श्रेणी में हैं।
अधिक न हो सकें तो निषिद्ध दिनों को छोड़कर पितरों की तृप्ति के लिए एक दिन तो श्राद्ध अवश्य करें।-
तदशक्तावनिषिद्धे एकस्मिन् दिने वा कुर्यात्।
श्राद्ध न करने पर -
न तत्र वीरा जायन्ते निरोगा न शतायुषाः।
न च श्रेयोऽधिगच्छन्ति यत्र श्राद्धं विवर्जितम्।।
श्राद्धमेतन्न कुर्वाणो नरकं प्रतिपद्यते।।
अर्थात् पितरों के श्राद्ध नहीं करने से घर में होने सन्तान न निरोगी, न वीर और न दीर्घायु होती है। किसी भी प्रकार का कल्याण नहीं होता। इस परम पवित्र काल में श्राद्ध न करने से नरक में जाना पड़ता है।
श्राद्ध करने से -
आयुः प्रजा धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानि च।
राज्यं चैव प्रयच्छन्ति प्रीताः पितृगणा नृणाम्।।
अर्थात पितरों को प्रसन्नता से आयु पुत्र धन विद्या स्वर्ग मोक्ष सुख तथा राज्य प्राप्त होता है। अतः पितरों के अक्षय्य पुण्य तृप्ति के लिए अपने दिवंगतों का श्राद्ध अवश्य करें।
डॉ कौशल दत्त शर्मा
सेवानिवृत्त प्राचार्य- संस्कृत शिक्षा
नीमकाथाना राजस्थान
9414467988
