वर्ष 2025 का अन्तिम ग्रहण भारतवर्ष के किसी भी भूभाग पर दिखाई नहीं देगा।
21 सितम्बर रविवार आश्विन अमावस्या की रात ग्यारह बजे बाद से प्रारम्भ होगा।
यह ग्रहण भारत से सुदूर दक्षिण पूर्वी क्षेत्रों में, प्रशान्त महासागर, न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के कुछ भूभागों में अलग अलग समय में सूर्यग्रहण दिखाई देगा।
वैसे भी रात्रि में ग्रहण होने से दिखाई नहीं देगा। यह भी अनिवार्य नहीं है कि दिन में कहीं भी होने वाला सूर्यग्रहण भारत में या अन्य देशों में दिखाई ही दे।
अतः भारत के किसी भी हिस्से में इस ग्रहण कोई प्रभाव दिखाई नहीं देगा और न ही इसका दुष्प्रभाव पड़ेगा।
जब ग्रहण दिखाई ही नहीं देगा तो किसी भी प्रकार का सूतक या दोष भी नहीं रहेगा। स्नान दान पुण्य आदि की कोई आवश्यकता नहीं है।
पं. कौशल दत्त शर्मा
प्राचार्यचर- संस्कृत शिक्षा
नीमकाथाना राजस्थान
9414467988
ग्रहण विमर्श
सामान्य रूप से चन्द्र ग्रहण का सूतक-वेध-शर तीन प्रहर (9घंटे) पहले लगता है। जैसा कि अभी सात सितम्बर 2025 रविवार को हमने देखा है।
ग्रस्तोदित चन्द्र ग्रहण का सूतक चार प्रहर (12 घंटे)पहले प्रारम्भ हो जाता है। या यों कहें कि सूर्योदय के साथ ही सूतक लग जाता है। कतिपय शास्त्रज्ञ तो पूर्व दिन की संध्या काल से ही अन्नादिक ग्रहण का दोष लिखते हैं। तो कुछ अरुणोदय काल से मानते हैं।
03 मार्च 2026 मंगलवार को फाल्गुनी पूर्णिमा पर ऐसा ही ग्रस्तोदित चन्द्र ग्रहण दिखाई देगा। जबकि पूर्व दिन 02 मार्च को होलिका दहन है।
दो मार्च को होलिका दहन तो होगा ही। भद्रा का साया भी 56 घटी बाद अरुणोदय काल तक है। अरुणोदय काल में भद्रा व्याप्ति की स्थिति में होलिका दहन भद्रा उपरान्त सम्भव नहीं है। ऐसी विकट परिस्थितियों के लिए ही भद्रामुख को छोड़कर भद्रा में ही भद्रापुच्छ काल में होलिका दहन करना होगा।
जब पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण पूर्वी देशों में दिन में ही प्रारम्भ हो जाता है तो हमारे यहां ग्रसित हुआ चन्द्रमा उदित होगा। उसका सूतक चन्द्रोदय से बारह घण्टे पहले प्रारम्भ हो जाएगा।
ग्रस्त रहता हुआ चन्द्रग्रहण सूर्योदय बाद तक भी चल रहा होता है तो ग्रस्तास्त ग्रहण कहलाता है। उसका शुद्धिकरण सायं चन्द्रमा के दर्शन बाद ही कहा गया है।
इस बार भारत में होलिका दहन पर चन्द्र ग्रहण ग्रस्तोदय ( चन्द्रमा उदय होने से पहले ही राहुग्रसित है- चन्द्रोदय होने से पहले ग्रहण प्रारम्भ होना ) होने के कारण चार प्रहर (१२ घंटे) पूर्व सूतक लगेगा।
जिस भी स्थान पर चन्द्रोदय जितने बजे होगा उस समय से बारह घंटे पहले ग्रहण का सूतक काल प्रारम्भ हो जाएगा।
पूर्णिमा को सभी स्थानों पर सूर्यास्त के साथ ही चन्द्रोदय हो जाता है। अर्थात् जितने बजे सूर्यास्त होगा उससे बारह घंटे पहले सूतक माने।
जैसे नीमकाथाना का सूर्यास्त और चन्द्रोदय सायं 6.24 पर होगा तो नीमकाथाना में सूतक चार प्रहर पहले अर्थात् बारह घंटे पहले सुबह 6.24 से ही प्रारम्भ हो जाएगा।
इस प्रकार हमारे यहां चन्द्रग्रहण का प्रारम्भ (स्पर्श) सायं 6.24 पर होगा। और शुद्धि ( मोक्ष ) सायं 6.47 बाद होगी। ग्रहण का पर्वकाल मात्र 23 मिनट का है। वैसे सम्पूर्ण पर्व काल 3.27 मिनट का है।
वैसे होली पर होने वाला ग्रहण खग्रास है। फिर भी भारत के अधिकतम भाग में चन्द्र ग्रहण मध्य रूप में दृश्य नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा उदय से पूर्व ही मध्य से मुक्त हो चुका होगा।
जहां सूर्यास्त 5.04 से पहले होगा वहां आकाश में चन्द्रमा काली थाली के समान दिखाई देगा। बाद वाले क्षेत्रों में शुद्ध होता दिखाई देगा।
अतः होलिका पर नीमकाथाना क्षेत्र में सभी धार्मिक कृत्यों को प्रातः 6.24 से पहले सम्पन्न कर लें। अरुणोदय से पहले कर लें तो और भी अच्छा है।
सभी स्थानों पर मन्दिरों में भी सूतक लगने से पहले आरती आदि सम्पन्न कर लेनी चाहिए।
पूरे भारत में होली पर सूर्योदय से पहले ही ग्रहण का सूतक प्रारम्भ हो जाएगा।
ग्रहण से पूर्व स्नान, मध्य में हवन जपार्चन एवं अन्त में शुद्धिस्नान का विधान है। ग्रहण काल में ही पुण्यकाल कहा गया है। ग्रहण में संक्रान्ति की भांति बाद में पुण्य काल नहीं होता है। ग्रहण काल में पुस्तक माला आसन स्पर्श का दोष नहीं होता है।
शुद्धिकरण के पश्चात नूतन यज्ञोपवीत धारण कर पूजा अर्चना कर भोजन आदि ग्रहण करें।
विशेष-
सूर्यसिद्धांते-
छादको भास्करस्येन्दुरध:स्थो घनवद्भवेत्।
भूच्छायां प्राङ्मुखश्चन्द्रो विशत्यस्य भवेदसौ।।
वराहसंहितायाम्-
भूच्छायां स्वग्रहणे (चन्द्रग्रहणे) भास्करमर्कग्रहे च प्रविशतीन्दु:।
ज्योतिषशास्त्र और धर्मशास्त्र में ग्रहण के पृथक् पृथक् कारण कहे हैं।
समस्त भूमण्डल पर एक वर्ष में कम से कम दो और अधिकतम सात ग्रहण लगते हैं।
अंशात्मक अन्तर से अमावस्या के दिन सूर्य-चन्द्रमा से षड्राश्यन्तर राहु होने पर सूर्य ग्रहण और पूर्णिमा के दिन सूर्य से चन्द्र-राहु की षड्राश्यन्तर स्थिति चन्द्रग्रहण बनाती है।
चन्द्रग्रहण में चन्द्रमा पूर्वाभिमुखी गति करता हुआ भूच्छाया में प्रवेश करता है।
अतः चन्द्रग्रहण प्रत्येक देश में समान रूप से देखा जाता है।
और सूर्यग्रहण में चन्द्रमा पश्चिम दिशा से आकर बादल के सदृश सूर्यबिम्ब में प्रवेश करता है।
अतः सूर्यग्रहण विविध दृष्टिवश प्रत्येक देश में विविध रूपों में दिखाई देता है।
इसीलिए कभी भी चन्द्रग्रहण का स्पर्श पश्चिम दिशा से और सूर्यग्रहण का स्पर्श पूर्व दिशा से नहीं होता है। स्पर्श अर्थात् आरम्भ।
यथा बृहत् संहितायाम्-
भूच्छायां स्वग्रहणे भास्करमर्कग्रहे प्रविशतीन्दु:।
प्रग्रहणमत: पश्चान्नेन्दोर्भानोश्च पूर्वार्द्धात्।।
किसी भी मास में पक्ष भेद अर्थात् एक पखवाड़े के भीतर लगातार दो ग्रहण शुभ नहीं होते हैं।
चन्द्र ग्रहण के बाद सूर्य ग्रहण होना शुभ संकेत नहीं हैं।-
सोमग्रहे निवृत्ते पक्षान्ते यदि भवेद् ग्रहोऽर्कस्य।
तत्रामय: प्रजानां दम्पत्योर्वैमनस्यं जायतेऽन्योन्यम्।।
और सूर्य ग्रहण के पश्चात चन्द्रग्रहण हो तो-
यद्येकस्मिन्मासे ग्रहणं रविसोमयोस्तदा क्षितिपा:
स्वबलक्षोभै: संक्षयमायान्त्यतिशस्त्रकोशञ्च।
अर्कग्रहात्तु शशिनो ग्रहणं यदि दृश्यते ततो विप्रा:
*नैकव्रतु फलभाजो भवन्ति मुदिता: प्रजाश्चैव।।
ग्रहण में व्यवस्था-
सूतके मृतके चैव न दोषो राहुदर्शने।
चन्द्रसूर्यग्रहे यस्तु स्नानं दानं शिवार्चनम्।
न करोतु पितु: श्राद्धं स नर: पतितो भवेत्।।
सन्ध्या काले यदा राहु अस्ते शशीभास्करौ।
तदहे नैव भुंजीत रात्रावपि कदाचन।।
सायंसंध्याया: सूर्यग्रहण अस्ते पूर्वेह्नि रात्रौ च न भोक्तव्यम्।
ग्रस्यमाने भवेत्स्नानं ग्रस्ते होमो विधीयते।
मुच्यमाने भवेद्दानं मुक्ते स्नानं विधीयते।।
ग्रहण का स्नान गंगा यमुना संगम में करना श्रेयस्कर है।
सर्वेषामेव वर्णानां सूतकं राहूदर्शने।
सचैलं तु भवेत्स्नानं सूतकान्तं च वर्जयेत्।।
भुक्तौ यस्तु न कुर्वीत स्नानं ग्रहणसूतके।
स सूतकी भवेत्तावद्यावत्स्यादपरो ग्रह:।।
मृते जन्मनि सङ्क्रान्तौ ग्रहणे चन्द्रसूर्ययो:।
अस्पृश्यस्पर्शने चैव न स्नायादुष्णवारिणा।।
ग्रहण काल के समय अपने इष्टदेव के नाम या मन्त्रों का जाप करें।
सप्ताष्टजन्मशेषेषु चतुर्थे दशमे तथा।
नवमे च तथा चन्द्रे न कुर्याद्राहूदर्शनम्।।
वेध काल (सूतक - शर ) में बाल, वृद्ध, रोगी और गृहस्थ के लिए भोजनादि के नियम अनिवार्य नहीं है। इनकी शुद्धि सूर्य किरणों से और अग्नि मात्र से ही हो जाती है। के
सूतक और ग्रहण काल में शयनादि भी निषिद्ध हैं। देव मूर्ति का स्पर्श भी नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के दिन रात्रि में भी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
अमान्न- कच्चे अन्न या स्वर्णादि से श्राद्ध करने का विधान है।
श्राद्ध व्रत अवश्य ही करना चाहिए। पूजन का निषेध है।
ग्रहण के समय भगवान का चिंतन, जप, ध्यान करने पर उसका लाख गुना फल मिलता है।
ग्रहण के समय सम्भोग करने से सुअर की योनि मिलती है और चाण्डाल सन्तति पैदा होती है।
ग्रहण के समय भोजन करने और तैल लगाने से कुष्ट रोग हो सकता है।
ग्रहण शुद्धि पश्चात् गर्म पानी से स्नान नहीं करें। बच्चे बूढ़े और बीमार गर्म पानी उपयोग में ला सकते हैं।
विशेष सिद्धांत है कि सूर्य ग्रहण अमावस्या और प्रतिपदा की सन्धि में और चंद्रग्रहण पूर्णिमा और प्रतिपदा की सन्धि में ही होते हैं-
पूर्णिमाप्रतिपत्सन्धौ राहु: सम्पूर्णमण्डलम्।
ग्रसते चन्द्रमर्कं च दर्शप्रतिपदन्तरे।।
और भी सरल कर दें ग्रहण का मध्य पूर्णिमा अमावस्या का समाप्ति काल ही होता है।-
पर्वप्रतिपदसन्धौ ग्रहण मध्य:
विशेष स्पष्टीकरण -
दीपावली निर्णय में धर्मसिंधु आदि धर्म ग्रंथों में एक वाक्य सार्द्धत्रियामा ... वर्षों वर्षों बाद उपयोग में आता है और उसके मूल रहस्य में सूर्य ग्रहण ही है।
जब दूसरे दिन अमावस्या साढ़े तीन प्रहर बाद तक हो, सूर्यास्त के पूर्व ही ग्रहण समाप्त हो रहा हो तो उस दिन ग्रहण शुद्धि के बाद प्रतिपदा में दीपावली मनाई जाएगी। ऐसा पूजयपाद पिताजी कहते थे। ऐसा इस बार कहीं नहीं है। 21 की दीपावली शास्त्र विरुद्ध है।
और भी विशेष -
ग्रहण काल में शवदाह करना और श्राद्ध करना शास्त्रीय है।
यथा-
1. जिसके घर में मृत्यु का महाग्रहण लग गया है उसे सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण क्या कहेंगे। सूतकी यथा सुविधा शवदाह करने का अधिकारी है।
2. ग्रहण काल में पिता के श्राद्ध का विशेष महत्व कहा है।
3. रात्रि में श्राद्ध का दोष है, निषेध है परन्तु ग्रहण काल की रात्रि में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। विधि शास्त्रोक्त हो।
4. पूर्णिमा और अमावास्या दो तिथियों में ग्रहण आते हैं, दोनों ही श्राद्ध के लिए महत्वपूर्ण हैं। कोई भी जिस किसी विधि से पिता आदि का, विशेष रूप से पिता का श्राद्ध करता है उसे सदा सर्वदा के लिए अक्षय्य पुण्य प्राप्त होता है।
कहा भी है -
स्नानं दानं तप: श्राद्धमनन्तं राहुदर्शने।
राहुदर्शनदत्तं हि श्राद्धमाचन्द्रतारकम्।।
गुणवत्सर्वकामीयं पितॄणामुपतिष्ठते।।
5. लोकाचार में ग्रहणकाल और ग्रहण के सूतक को श्राद्ध के लिए हेय माना जाता है जबकि इनमें किया गया श्राद्ध अनन्त पुण्यदायी है।
6. किसके घर में सूतक-पातक हैं उसके घर किसी ग्रहण का सूतक नहीं लगता है। न ग्रहणकाल का कोई दोष है। ग्रहण के निमित्त किए जाने वाले स्नानादि की भी सूतकी को कोई आवश्यकता नहीं है।
7. श्राद्ध में और मृत्यु होने पर ग्रहण का सूतक नहीं लगता है।
8. सूतक में भी ब्राह्मण भोजन करवाया जा सकता है। यदि सम्भव हो तो।
9. अमावस्या - पूर्णिमा को ग्रहण के दिन जिस किसी के भी घर में श्राद्ध कर्म होता है और सहजता से भोजन करने वाले ब्राह्मण मिल रहे हों तो सूतक काल में भी श्राद्ध करने और श्राद्ध प्रसाद ग्रहण करने का दोष नहीं है। परन्तु लोकाचार में हेय सा है।
श्राद्ध अपने आप में ग्रहण और ग्रहण के सूतक से ऊपर है। इस पक्ष को बुद्धिसम्पन्न महानुभावों को समाज में पुनर्स्थापित करना चाहिए।
पितरों का विशेष आशीर्वाद होता है तब ग्रहण के दिन श्राद्ध करने का सौभाग्य प्राप्त होता है किसी को।