पीपल वैसे भी पूजनीय वृक्ष मना जाता है, यह ठंडक प्रदान करता है, धार्मिक ग्रंथों में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है, ग्रंथों में इसे भगवान् विष्णु का रूप मना गया है, मृतक संस्कार भी पीपल वृक्ष के बिना पूर्ण नहीं होते हैं। इन सबके बावजूद पीपल और बरगद के पेड़ों को संरक्षित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। यहां तक कि सरकारी नर्सरी में भी इनका प्लांटेशन नहीं किया जाता है। पीपल और बरगद दोनों के पौधे बीज से पल्लवित नहीं होते, बल्कि ये पक्षियों के बीट से ही निकलते हैं। यही कारण है कि पीपल और बरगद के पौधे अक्सर खंडहर या पुराने इमारत के उन दीवारों में पाए जाते हैं, जहां पक्षी बैठा करते हैं।
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जयपुर। बचपन में आपने तमाम भूतिया कहानियां सुनी होगी या फिर कई सारी हॉरर मूवीज़ देखी होंगी, जिनमें आम तौर पर बताया गया होगा कि पीपल और बरगद के पेड़ों पर ही भूत रहते हैं। लेकिन इस खबर को पढ़ने के बाद वो मिथ्या समाप्त हो जायेगी, क्योंकिे ये दोनों पेड़ पर्यावरण के सबसे अच्छे दोस्त हैं। अब श्री कल्पतरु संस्थान जयपुर सहित प्रदेश में बरगद और पीपल के वृक्षों को संरक्षित करने में लगा हैं। संस्थान का मानना हैं कि बरगद और पीपल पर्यावरण के अच्छे मित्र हैं। पर्यावरणविद विष्णु लाम्बा लोगों इन पेड़ों का धार्मिक महत्व बताते हुए इन्हें रोपने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं। आज वे संस्थान से जुड़े लोगों के सहयोग से हज़ार से ज्यादा पेड़ों को संरक्षित करने में लगे हैं। विलुप्त हो रहे बरगद और पीपल के पेड़ों को संरक्षित करने का बीड़ा उठाए लाम्बा बताते हैं कि इन पेड़ों को संरक्षित करने के लिए उन्होनें खंडहर सहित अन्य जगहों पर उग आए पीपल और बरगद के हज़ार से भी अधिक पौधों को एकत्र किया है। उन्होंने जयपुर वाशियों से अपील की है कि वे अपने पुरखों की स्मरण और शादी, जन्मदिन जैसे अन्य महत्वपूर्ण अवसर की याद को चिर स्मरणीय बनाए रखने के लिए इन पौधों का रोपण कर देखभाल की जिम्मेदारी लें। अपने इस अभियान के संबंध में लाम्बा ने बताया कि बरगद और पीपल के वृक्ष पर्यावरण के सबसे अच्छे मित्र हैं।

पीपल वैसे भी पूजनीय वृक्ष मना जाता है, यह ठंडक प्रदान करता है, धार्मिक ग्रंथों में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है, ग्रंथों में इसे भगवान् विष्णु का रूप मना गया है, मृतक संस्कार भी पीपल वृक्ष के बिना पूर्ण नहीं होते हैं। इन सबके बावजूद पीपल और बरगद के पेड़ों को संरक्षित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। यहां तक कि सरकारी नर्सरी में भी इनका प्लांटेशन नहीं किया जाता है। पीपल और बरगद दोनों के पौधे बीज से पल्लवित नहीं होते, बल्कि ये पक्षियों के बीट से ही निकलते हैं। यही कारण है कि पीपल और बरगद के पौधे अक्सर खंडहर या पुराने इमारत के उन दीवारों में पाए जाते हैं, जहां पक्षी बैठा करते हैं। लाम्बा ने बताया कि पीपल और बरगद के पेड़ तेजी से विलुप्त होते जा रहे हैं। पुराने पेड़ों के नष्ट होने और नए पौधे न रोपे जाने से यह स्थिति निर्मित हुई है। इन दोनों पेड़ों को समय रहते संरक्षित नहीं किया गया तो इनके अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगेगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके लाम्बा ने शहरवासियों से अपील की है कि वे सड़क के किनारे सहित अन्य जगहों पर विभिन्न अवसरों पर रोपे गए पौधों की देखभाल में सहयोग करें। उन्होंने कहा कि रोपित पौधे आने वाली पीढ़ी की संपत्ति और इसकी देखभाल करना हम सबकी जिम्मेदारी। इस महत्वपूर्ण कार्य को सिर्फ सरकारी तंत्र के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। लाम्बा ने कहा कि भारत समेत पूरे विश्व में ग्लोबल वार्मिग का जो खतरा मंडरा रहा है, उसका असर अब जयपुर में भी देखा जा रहा है। तेजी से असंतुलित होता मौसम इसका सबूत है। ग्लोबल वार्मिग और प्राकृतिक आपदा से बचने का एकमात्र उपाय पर्यावरण संरक्षण ही है ! राजस्थान के वृक्ष पुरुष के नाम से मशहूर लाम्बा नें कहा की जयपुर के इतिहास के चस्मदीद गवाह पुरानें वृक्षों को सरकार की और से किसी प्रकार का सरक्षण नहीं दिया जा रहा, जयपुर में वृक्षों के नाम पर अमरूदों का बाग़, कान महाजन का बड, खेजड़ी वालों का रास्ता जैसे अनेक उदाहरण है जो हमें प्रकृति सरक्षण का संदेस देते है.
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HINDU ASTHA

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